Success Story: इंफोसिस के ऑफिस में झाड़ू-पोछा करने वाला शख्स बना करोड़ों की कंपनी का मालिक, ऐसे बदली किस्मत

Success Story: कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। मेहनत करने वाले व्यक्ति सफलता जरुर हासिल करते हैं।
 
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Success Story: कहते हैं कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। मेहनत करने वाले व्यक्ति सफलता जरुर हासिल करते हैं। आज हम आपको ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं। जो कभी इंफोसिस के ऑफिस में झाड़ू पोछा करता था लेकिन अब करोड़ों का मालिक बन गया। ऑफिस ब्वॉय के साथ जॉब करते हुए हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहे। आज वह दो कंपनियों के मालिक है। पीएम मोदी भी दादासाहेब के इस हौंसले की तारीफ कर चुके हैं।

दादा साहेब भगत कौन हैं
दादासाहेब भगत का जन्म 1994 में महाराष्ट्र के बीड में हुआ था। दादासाहेब ने हाई स्कूल की पढ़ाई करने के बाद पुणे से आईटीआई का कोर्स पूरा किया। उस दौरान दादा साहेब को नौकरी की काफी जरूरत थी। ऐसे में उन्होंने गेस्ट हाउस में रूम सर्विस ब्वॉय के तौर पर नौकरी कर ली। इंफोसिस के गेस्ट हाउस में उनका काम लोगों को रूम सर्विस, चाय-पानी देना था। उन्हें झाड़ू-पोछा, साफ-सफाई करना पड़ता था। इसके लिए उन्हें 80 रुपये रोजाना मिला करते थे।

ऐसे बदली किस्मत
दादा साहेब जानते थे कि पढ़ाई ही वह हथियार है, जिसके माध्यम से वह अपनी किस्मत बदल सकते हैं। साल 2009 में दादा साहेब शहर चले आए। उन्हें इंफोसिस कंपनी में काम मिल गया। ऑफिस ब्वॉय की नौकरी के लिए उन्हें 9,000 रुपये की सैलरी मिलने लगी। इंफोसिस में काम करना उनके लिए अच्छा रहा। उन्होंने देखा कि लोग कंप्यूटर में कुछ करते हैं, जिसकी वजह से वो बड़ी-बड़ी गाड़ियों से आते है। कंप्यूटर को लेकर उनकी इच्छा जागने लगी। उन्होंने वहीं से कंप्यूटर और उसकी तकनीक से जुड़ी डिटेल सीखना शुरू कर दिया। रात में ग्राफिक्स डिजाइनिंग और एनीमेशन की पढ़ाई करते थे। नौकरी के साथ-साथ C++ और Python का कोर्स किया।


आज हैं करोड़पति
सब ठीक चल रहा था कि एक दिन दादा साहेब के साथ एक हादसा हो गया। एक्सीडेंट के बाद वो शहर छोड़कर तीन महीने के लिए गांव चले गए। वहां से उन्होंने दोस्त से किराए पर लैपटॉप लिया और टेम्प्लेट बनाकर उसे एक प्लेटफ़ॉर्म पर बेचना शुरू किया। इससे उन्हें सैलरी से ज्यादा कमाई होने लगी। साल 2016 में दादा साहेब ने ख़ुद की Ninthmotion कंपनी शुरू कर दी।

आने लगे बड़े ऑफर
खुद की कंपनी से जब उनके पास 40 हज़ार से ज्यादा एक्टिव यूजर्स आने लगे तो उन्होंने ऑनलाइन ग्राफिक्स डिजाइनिंग का नया सॉफ्टवेयर डिजाइन कर दिया। ये सॉफ्टवेयर कैनवा जैसा ही है। इस कंपनी का नाम रखा DooGraphics। इसके बाद उनके पास बड़ी-बड़ी कंपनियों से ऑफर आने लगे। आज वह दो कंपनियों के मालिक हैं। दादा साहेब की कंपनी लोगों को ग्राफिक टैम्पलेट बनाकर देती है।

 कंपनी मोशन ग्राफिक और 3डी टैम्पलेट भी बनाती है, उनके क्लाइंट देश में भी हैं। लेकिन अधिकांश क्लाइंट विदेशी ही हैं। वह कहते हैं कि उनकी कंपनी केनवा वाले मॉडल पर काम कर रही है। दादा साहेब के पास आज खुद की ऑडी है।