IAS Success Story in Hindi : चाहे तुम जितना भी पढ़ लो चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है इन तानों से भी इस अफसर ने नहीं मानी हार, पहले ही प्रयास में बन गया आईएएस

 
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IAS Success Story in Hindi :  UPSC की परीक्षा देश की सबसे टफ परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। इस परीक्षा को पास करने का सपना तो हर कोई देख लेता है लेकिन इसे पास केवल चुनिंदा लोग ही कर पाते हैं।

क्योकि इसे पास करने के लिए दिन रात मेहनत करने के साथ साथ लगभग हर विषय का ज्ञान होना जरूरी है। ये परीक्षा इतनी टफ होने के बावजूद बहुत सी ऐसी हस्तियां हैं जो इसे पास कर लेती है। आज हम आपको एक ऐसी ही हस्ती के बारे में बताने जा रहे हैं। जिन्होंने कड़ी मेहनत कर इस परीक्षा को पास किया। 

बड़ी मुश्किल से चलता था घर का गुजारा

हम बात कर रहें हैं आईएएस ऑफिसर गोविंद जयसवाल की। जो मात्र 24 साल की उम्र में साल 2006 में अपने पहले ही अटेंप्ट में 48वां रैंक हासिल कर आईएएस ऑफिसर बन गए। इस अफसर के पिता एक रिक्शा चालक थे। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चलता था। लेकिन अनेक बाधाओं के बाद भी गोविंद जयसवाल ने हार नहीं मानी और पहले ही अटेम्प्ट में UPSC की परीक्षा को क्रेक कर अफसर बन गए। 

छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा निकलता था  पढ़ाई का खर्चा 

बनारस की तंग गलियों में रहने वाला गोविंद के परिवार में माता-पिता के अलावा उनकी दो बहनें भी हैं। घर की आर्थिक स्थिति के खराब होने के कारण गोविंद ने अपनी पढाई और किताबों का खर्च निकालने के लिए कक्षा 8वीं में ही अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था। उससे वह अपनी किताबों और पढ़ाई का खर्चा निकलते थे। 

ताना देते  थे लोग 

आपको बता दें  पिता के रिक्शा चालक होने और घर की आर्थिक के खराब होने के कारण लोग कई बार गोविंद को यह ताना भी देते थे कि चाहे तुम जितना भी पढ़ लो चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है। लेकिन फिर भी गोविन्द ने हार नहीं मानी। गोविन्द का कहना है कि गोविंद कई बार घर के आस-पास के शोर से इतना परेशान हो जाते थे कि वे अपने कानों में रूई लगा कर पढ़ाई किया करते थे। 

मोमबत्ती या डिबिया जलाकर की पढ़ाई 

जब लाइट की समस्या आती थी तो गोविन्द मोमबत्ती या डिबिया जलाकर पढ़ाई करते थे। उनका कहना है कि उन्होंने पैसों के आभाव में इंजीनियरिंग की अपादयी नहीं की थी। गोविंद अपने स्कूल के टॉपर रह चुके थे, जिस कारण लोगों ने उन्हें कक्षा 12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने की सलाह दी थी।

इंजीनियरिंग करने का आइडिया किया ड्रोप 

 हालांकि, वो भी कुछ ऐसा ही चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला की एप्लिकेशन फॉर्म भरने की फीस 500 रुपए है, तो उन्होंने इंजीनियरिंग करने का आइडिया ड्रोप कर दिया और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में एडमिशन ले लिया। 

इस तरह सोचा आईएएस बनने का 

बता दें कि जब गोविन्द कॉलेज में पढ़ाई  करते थे उस दौरान ही गोविंद ने यूपीएससी परीक्षा का तैयारी करने की सोची और उसी समय से तैयारी में जुट गए। फिर परीक्षा की फाइनल और अच्छी तैयारी के लिए गोविंद जैसे-तैसे करके दिल्ली आ गए। हालांकि, उसी दौरान उनके पिता के पैर में एक गहरा घाव हो गया और वे पूरी तरह से बेरोजगार हो गए। 

48वां रैंक हासिल कर आईएएस ऑफिसर बने 

ऐसे में परिवार ने अपनी एक मात्र सम्पत्ती, एक छोटी सी जमीन को मात्र 30,000 रुपए में बेच दिया ताकि उनका बेटा अपनी यूपीएससी की कोचिंग पूरी कर सके। इसके बाद गोविन्द ने कोचिंग पूरी की और  मात्र 24 साल की उम्र में साल 2006 में अपने पहले ही अटेंप्ट में 48वां रैंक हासिल कर आईएएस ऑफिसर बन गए।