Chanakya Niti: जीवन में सफलता पाने के लिए इन बातों को करें नजरअंदाज, जल्द हासिल हो जाएगा लक्ष्य, जानें क्या कहती है चाणक्य नीति

चाणक्य नीति जीवन को बेहतर बनाने का सर्वोत्कृट मार्ग है। इसे समझना और अमल लाना सदैव श्रेयस्कर होता है।
 
Chanakya Niti
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Chanakya Niti : चाणक्य नीति जीवन को बेहतर बनाने का सर्वोत्कृट मार्ग है। इसे समझना और अमल लाना सदैव श्रेयस्कर होता है। जिसने जीवन में चाणक्य की नीतियों का सही समय और सही तरीके से पालन किया, उसे कभी दुख का मुंह नहीं देखना पड़ा। आचार्य चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में साधारण जीवन व्यतीत करते थे और लोगों के हित के लिए काम करते थे।

जीवन को शांतिप्रिय व सुखमय बनाएं

चाणक्य के विचारों को अपने जीवन में अपनाने वाला व्यक्ति लक्ष्य प्राप्ति के लिए हर कदम सोच-समझकर उठाता है। आचार्य चाणक्य की नीतियों के अनुसार, अपने जीवन को शांतिप्रिय और सुखमय बनाए रखने के लिए मनुष्य हमेशा अच्छे कार्य करने चाहिए। साथ ही उन 3 चीजों से दूर बनाए रखना चाहिए जो लक्ष्य से भटकाती हैं।

दिखावा

चाणक्य कहते हैं कि दिखावे कि दुनिया बहुत छोटी है। दिखावे का जीवन उस जहर के समान है जो धीरे-धीरे असर करता है और व्यक्ति को मृत्यु के मुंह तक ले जाता है।

दिखावा करने वाला व्यक्ति कभी खुश नहीं रह पाता, क्योंकि वह हमेशा दूसरे से खुद की तुलना करता है और कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। मान्यता है कि दिखावा मनुष्य को अंधकार की तरफ ही ले जाती हैं। ऐसे में व्यक्ति कंगाल होता चला जाता है। इससे दूर रहने वाला व्यक्ति तरक्की करता है।

आलस

लालच की तरह आलस भी बुरी बला है। आलस प्रतिभावान व्यक्ति को भी बर्बाद कर देता है। ये ऐसा अवगुण है जिसके कारण व्यक्ति को लाभ के अवसरों से वंचित होना पड़ता है। आलसी इंसान अपने हर काम को टाल देता है।

यही वजह है कि सफलता भी उससे दूर रहती है। संघर्ष का दायरा बढ़ जाता है और व्यक्ति को भविष्य में तरक्की पाने के लिए डबल मेहनत करनी पड़ती है। लक्ष्य को प्राप्त करना है तो आलस को खुद से दूर रखें। समय पर अपने कार्य को पूरा करने का प्रयास सफलता के लिए जरूरी है।

अभिमान 

अभिमानी व्यक्ति खुद अपने कर्म के कारण कामयाबी से कोसों दूर हो जाता है। अभिमान के नशे में चूर इंसान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। अभिमान व्यक्ति के विनाश का कारण बनता है।

अहंकार में इंसान सही-गलत का आंकलन करना भूल जाता है और स्वंय को सर्वोपरि मानकर अनिष्ट कार्य करने लगता है। चाणक्य कहते हैं कि पद, पैसे का अभिमान पलभर का है, ये जीवनभर का सुख नहीं दे सकता।