Sarswati River : तो ऐसे फिर से धरा पर लाई जाएगी रहस्यमयी सरस्वती नदी, ये है हरियाणा सरकार की खास योजना

 
Sarswati River : तो ऐसे फिर से धरा पर लाई जाएगी रहस्यमयी सरस्वती नदी, ये है हरियाणा सरकार की खास योजना
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रहस्यों से भरी है सरस्वती नदी। प्रयाग में गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम। वेदों में इस नदी का जिक्र है। इसे वाणी और पानी की देवी कहा जाता है। नासा, इसरो, हरियाणा सरस्वती शोध संस्थान, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, हरियाणा सरस्वती हैरिटेज बोर्ड ने सरस्वती को धरा पर लाने को लेकर पिछले कुछ समय में गहन शोध किया है। इस नदी पर हुई रिसर्च ने नदी के होने के सवाल वाले मिथकों और भ्रमों को तोड़ दिया है।

.इस नदी के प्रवाह वाले क्षेत्र को अब तीर्थस्थल और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। हिमाचल के क्षेत्र में आदिबद्री डैम बनाया जाएगा। 215 करोड़ से यह डैम बनेगा। इसके साथ ही एक झील बनेगी। पर्यटन की दृष्टि से कालका से कलेसर तक का क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है।

इस क्षेत्र में आदिबद्री, लोहागढ़, कपालमोचन, माता मंत्रादेवी सहित अनेक धार्मिक व पर्यटन स्थल आते हैं। डैम के साथ-साथ यहां झील बनने से बहुत से पर्यटक आएंगे। सरस्वती नदी की कहानी अनूठी, रोचक, रहस्मयी, लजावाब और कमाल की है।

सरस्वती नदी का जिक्र ऋगवेद, उपनिषद, रामायण और महाभारत में भी मिलता है। सरस्वती की सभ्यता मोहन जोदड़ो और हड़प्पा से भी पुरानी है। अंग्रेजी विद्वान माइकल डेनिनो ने अपनी पुस्तक द लास्ट रिवर ऑन द् ट्रेल्स में भी सरस्वती नदी के बारे में विस्तार से उल्लेख किया है।

डेनिनो के शोध के अनुसार सरस्वती नदी से पहाड़ों से नीचले इलाकों में बहती थी। 4000 ईसा पूर्व यह सूखने लगी और 2 हजार ईसा पूर्व विलुप्त हो गई। इय नदी का उद्गम स्थल हिमालय की पहाडिय़ों से थोड़ा नीचे हरियाणा के यमुनानगर के आदिब्रदी से माना जाता है। शिवालिक की पहाडिय़ों से हरियाणा के यमुनानगर से यह उत्तरी राजस्थान में प्रवेश करती है।

इसके बाद उत्तरी राजस्थान से चोलीस्थान हो हुए गुजरात के कच्छ के रण में उतरती है। ऋगवेद में सरस्वदी नदी के बारे में 72 बार उल्लेख किया गया है। ऋगवेद के नदी स्तुति सुक्त में 45 श्लोक सरस्वती को लेकर हैं। 3 श्लोक तो पूरी तरह से नदी को ही समॢपत हैं।

इस नदी की पौराणिक, भौगोलिक महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ऋगवेद में इस नदी को वेगवती, ऐश्वर्य व तेज में अग्रणी कहा गया है। एक ऐसी नदी जो तीव्र गर्जना के साथ उतरती है। पुरातात्विक नजरिए से भी इस नदी का बहुत महत्व है।

आज की सभ्यता और घग्घर नदी के किनारे की सभ्यता को देखें तो एक तिहाई सिंधु घाटी सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे बहती थी। ऐसा भी माना जाता है कि इस नदी के चलते आज रेगिस्तान बन गया राजस्थान का इलाका पहले कभी सुंदरवन की तरह दिखता होगा।

इस नदी के मिथक होने संबंधी आंकलनों को जैसलमैर के कुएं मिथ्या साबित कर देते हैं। तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, इसरो की ओर से किए गए शोध के बाद जैसलमैर में पचासियों जगह नदी वाले प्रवाह क्षेत्र में कुएं खोदे गए। जैसलमैर जैसे मरुस्थलीय और सूखे इलाके में 50 से 60 मीटर पर भूजल मिल जाता है।

सरस्वती को दूसरे कई नामों से भी जाना जाता है। इसे सप्त ङ्क्षसधू कहा जाता है। सरस्वती नदी को फिर से प्रवाहित करने को लेकर अनेक बार पहल की गई। अंग्रेजी हुकूमत के समय सबसे पहले भारतीय पुरातत्व सर्वे के पहले महानिदेशक लॉर्ड कङ्क्षनगम ने सरस्वती नदी पर काम किया।

1999 में दर्शन लाल जैन ने सरस्वती शोध संस्थान बनाया। इसके अलावा तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम, इसरो ने भी सरस्वती पर शोध किया। साल 2015 में हरियाणा सरकार ने सरस्वती हैरिटेज बोर्ड क गठन किया।

हरियाणा की ओर से ब्रिटिश लाइब्रेरी से जुटाए गए कुछ अहम दस्तावेजों और नक्शों में सरस्वती नदी के प्रवाहित होने के प्रमाण मिलते हैं। ब्रिटिश, मुगल, इटेलियन नक्शों में भी ऐसा मिला है। हरियाणा राजस्व के पुराने रिकॉर्ड और सिजरा में भी इस नदी के प्रमाण मिले हैं।

बस इस नदी को धरा पर लाने के लिए देवभूमि हिमाचल प्रदेश और हरियाणा ने बड़ी पहल की है। हिमाचल प्रदेश के क्षेत्र में आदिब्रदी डैम बनाया जाएगा। करीब 31.66 हैक्टेयर भूमि पर बनने वाले इस डैम पर 215 करोड़ 33 लाख रुपए की राशि खर्च होगी।

हर वर्ष 224 हैक्टेयर मीटर पानी का भंडाराण होगा। 61.188 हैक्टेयर मीटर पानी हिमाचल को जबकि 162 हैक्टेयर मीटर पानी हरियाणा को मिलेगा। इस पानी को सरस्वती नदी में प्रवाहित किया जाएगा। इस डैम की चौड़ाई 101.06 मीटर तथा ऊंचाई साढ़े बीस मीटर होगी। डैम से 20 क्यूसिक पानी सालभर सरस्वती नदी में प्रवाहित होगा।

इस प्रोजेक्ट का मकसद सरस्वती नदी के पुनरूद्धार के साथ-साथ भूमिगत जल स्तर को बढ़ाना है। डैम के शुरू होने से बारिश के दिनों में अधिक वर्षा से पैदा होने वाली बाढ़ की स्थिति से भी निपटा जा सकेगा। इसके नजदीक बनने वाली झील से पर्यटन बढ़ेगा।

इस सिलसिले में कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बीच एक एमओयू हुआ है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का कहना है कि उनका 35 साल पुराना सपना साकार हुआ है। उन्होंने वर्ष 1986-87 में सरस्वती के पुनरुद्धार के संबंध में हो रहे अनुसंधान से संबंधित यात्रा की थी। यह यात्रा यमुनानगर के आदिबद्री से शुरू होकर कच्छ तक पहुंची थी। बाइट मनोहर लाल

जाहिर है कि सरकार की यह पहल एक अच्छा संकेत है। वैसे सरस्वती नदी को पुराणों में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस नदी को देवी की तरह पूजा जाता है।

पुराणों में बताया गया है कि यह नदी आज भी बह रही है। लेकिन आज ये नदी किसी को दिखाई नहीं देती है और विज्ञान के अनुसार वो सैकड़ों साल पहले धरती पर थी लेकिन आज यह नदी विलुप्त हो चुकी है। इसलिए ये नदी अब दिखाई नहीं देती है। शास्त्रों की मानें तो सरस्वती नदी एक श्राप के कारण विलुप्त हो गयी और अब दिखाई नहीं देती है।

वहीं एक और कथा के अनुसार इस नदी को प्राप्त एक वरदान के कारण यह विलुप्त होकर भी अस्तित्व में हैं। उसी वरदान की वजह से प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन माना जाता है, जबकि सरस्वती नदी कभी किसी को दिखाई नहीं देती है। फिर भी यह अस्तित्व में बनी है।

एक कथा के अनुसार जोगी वन में मार्कंडेय मुनि ने तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर सरस्वती नदी गूलर में प्रकट हुईं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मार्कंडेय मुनि ने सरस्वती का पूजन किया जिसके बाद मां सरस्वती ने वन के तालाब को अपने जल से भरा और फिर पश्चिम दिशा की ओर चली गईं।

सरस्वती नदी के अस्तित्व की बात की जाए तो अलग-अलग शोध बताते हैं कि इसके अस्तित्व को शास्त्र, पुराण और विज्ञान सभी ने माना है। एक रिसर्च में ये बात कही गयी है कि लगभग 5,500 साल पहले सरस्वती नदी भारत के हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान व गुजरात में लगभग 1,600 किलोमीटर तक बहती थी और अंत में अरब सागर में विलीन हो जाती थी। अन्य पवित्र नदियों की ही तरह आज भी सरस्वती नदी की मौजूदगी को नकारा नहीं जा सकता है और पवित्र नदियों की बात की जाए तो गंगा और यमुना के साथ सरस्वती की पूजा भी की जाती है।