HSDM में बड़ा फर्जीवाड़ा, उम्मीदवार को 1000 रुपये का लालच, लेकिन सरकार से लेते थे 25000

हरियाणा कौशल विकास मिशन में फर्जीवाड़ा इतना बड़ा है कि जब इसकी परतें खुलने लगी तो सब हैरान ह गए।
 
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हरियाणा कौशल विकास मिशन में फर्जीवाड़ा इतना बड़ा है कि जब इसकी परतें खुलने लगी तो सब हैरान ह गए।
दरअसल कौशल विकास के नाम पर प्रशिक्षण केंद्रों में खानापूर्ति पूर्ति की जाती थी और पर्दे के पीछे से जमकर कमाई की जा रही थी 

मुख्यमंत्री उड़नदस्तों द्वारा प्रदेशभर के प्रशिक्षण केंद्रों पर छापे के बाद जांच में सामने आया है काफी संख्या में प्रशिक्षण केंद्र संचालक गांवों की गरीब महिलाओं और जरूरतमंद विद्यार्थियों का इसके लिए इस्तेमाल करते थे। 

उनको कोर्स के दौरान केवल परीक्षा के दिन सेंटर पर आने के लिए कहा जाता था और इसके बदले उनको 1000 रुपये दिए जाते थे। जबकि प्रति व्यक्ति एक कोर्स पूरा होने पर सरकार से 20 से 25 हजार रुपये के बिल पास कराते थे।

अधिकारियों, प्रशिक्षण केंद्र संचालकों की मिलीभगत से चल रहे इस खेल की रिपोर्ट हरियाणा सरकार को मिल चुकी है। 

अब मुख्यमंत्री उड़नदस्ते की जांच का दायरा और बढ़ गया है। अब जिला स्तर पर तैनात जिला कौशल कोऑर्डिनेटरों की भूमिका भी संदेह के घेरे में आ गई है। 

क्योंकि प्रशिक्षण केंद्रों की फिजिकल वेरिफिकेशन से लेकर विद्यार्थियों की हाजिरी, स्टाफ की संख्या से लेकर केंद्र में पर्याप्त सुविधाओं को जांचना इनका कार्य है। लेकिन केंद्र संचालकों से हुई मिलीभगत के चलते फर्जीवाड़े को अंजाम दिया गया है।

35 केंद्रों पर मारे गए छापों में 6500 की बजाय मात्र 1200 प्रशिक्षणार्थी ही मिले, जबकि प्रदेश में इस समय 200 से अधिक प्रशिक्षण केंद्र चल रहे हैं। 

सूत्रों का दावा है कि अगर और केंद्रों की जांच की जाए तो यह फर्जीवाड़ा और बड़े स्तर का निकल सकता है। उधर, मुख्यमंत्री उड़नदस्ते के एक अधिकारी ने बताया कि जांच का दायरा बढ़ाया है, गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ शिकंजा कसा जाएगा।

कोरोना के समय प्रशिक्षण केंद्रों में बायोमीट्रिक हाजिरी बंद कर दी गई, लेकिन कोरोना का चरम खत्म होने के बाद देशभर के अन्य प्रदेशों के केंद्रों में बायोमीट्रिक हाजिरी तो शुरू कर दी गई, लेकिन केंद्र के आदेश के बाद भी हरियाणा में केंद्रों में बायोमीट्रिक हाजिरी को लागू नहीं किया गया। 

इस समय केंद्रों में मैनुअली हाजिरी दिखाई जा रही थी और इसी के आधार पर बिल पास हो रहे थे। न तो जिला स्तर पर केंद्रों की कोई जांच होती थी 

और न ही मुख्यालय स्तर पर। जिला स्तर पर मिलीभगत के बाद बिलों को मुख्यालय भेजा था और यहां पर 10 प्रतिशत रिश्वत के साथ इनको पास कराया था।