हरियाणा में रणजीत चौटाला के मंत्री बने रहने पर सवाल, गैर विधायक के मंत्री रहने का क्या है नियम ?

हरियाणा में विधायक पद से इस्तीफा और अब लोकसभा चुनाव हारने के बाद रणजीत सिंह चौटाला के मंत्री पद को लेकर सवाल उठने शुरु हो गए हैं।
 
हरियाणा में रणजीत चौटाला के मंत्री बने रहने पर सवाल, गैर विधायक के मंत्री रहने का क्या है नियम ?
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हरियाणा में विधायक पद से इस्तीफा और अब लोकसभा चुनाव हारने के बाद रणजीत सिंह चौटाला के मंत्री पद को लेकर सवाल उठने शुरु हो गए हैं। नायब  सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित  भाजपा सरकार का  3 माह  का  कार्यकाल हो गया है।

बीती 12 मार्च को नये सीएम की शपथ के साथ 5 कैबिनेट मंत्रियों ने भी शपथ ली थी जिसमें रणजीत सिंह शामिल थे। उस वक्त वो सिरसा के रानियां विधानसभा से निर्दलीय विधायक थे।

इसके बाद 24 मार्च की शाम रणजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए‌ जिसके कुछ‌ समय बाद ही उन्हें हिसार‌ लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार‌ घोषित कर दिया गया जिस कारण रणजीत ने उसी दिन विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया‌ चूंकि  निर्दलीय‌ विधायक रहते हुए  कोई भी व्यक्ति किसी राजनीतिक‌ दल में शामिल नहीं हो सकता अन्यथा‌ उसे दल-बदल विरोधी‌ कानून के अंतर्गत ‌विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. हालांकि विधायक पद से त्यागपत्र के  साथ रणजीत ने  प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्रीपद ने अपना इस्तीफा नहीं दिया.

बहरहाल रानियां विधानसभा सीट से विधायक पद से त्यागपत्र देने के एक महीने से ऊपर का समय बीत जाने के बाद 30 अप्रैल 2024 को स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता द्वारा रणजीत का विधायक पद से त्यागपत्र, हालांकि 24 मार्च की पिछली‌ तारीख‌ से, स्वीकार कर लिया गया.  

4 जून को  हिसार लोकसभा सीट के परिणाम‌ में भाजपा से चुनाव लड़ रहे रणजीत को‌ कांग्रेस के जय प्रकाश‌ ने 63 हज़ार 381 वोटों से पराजित कर दिया. वही रणजीत हरियाणा की नायब‌ सैनी सरकार में 24 मार्च के बाद‌ से आज तक  गैर-‌विधायक होने बावजूद बिना‌ ताजा शपथ‌ लिए कैबिनेट मंत्री बने हुए हैं.

इस बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में एडवोकेट हेमंत कुमार ने  बीते माह 2 मई  को  भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को लिखकर महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक प्रश्न  उठाया  कि रणजीत सिंह, जो 12 मार्च  को वर्तमान 14वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य ( विधायक) थे  अर्थात  जिस दिन उन्होंने  नायब सैनी के मुख्यमंत्री के साथ उनकी सरकार में मंत्रीपद के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली.  

उसके बाद  24 मार्च 2024  पूर्वाह्न (फोरनून) से  विधायक के रूप में उनका इस्तीफा विधानसभा  अध्यक्ष द्वारा  स्वीकार कर लिया गया, इसलिए 24 मार्च 2024 की  बाद दोपहर (आफ्टरनून) से उनकी स्थिति एक पूर्व विधायक या दूसरे शब्दों में एक गैर-विधायक की हो गई  इसलिए यदि वह वर्तमान हरियाणा सरकार में उस क्षमता (गैर-विधायक वर्ग) में निर्बाध रूप से  24 मार्च 2024 की दोपहर से 23 सितंबर 2024 तक अर्थात भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार  गैर- विधायक तौर पर  अधिकतम छह माह तक मंत्रीपद पर आसीन तो रह सकते हैं  

परंतु  उसके लिए  उन्हें  हरियाणा के राज्यपाल द्वारा मंत्री के रूप में नए सिरे से पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई जानी चाहिए, क्योंकि 24 मार्च 2024 की दोपहर  से वे गैर-विधायक हैं और मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ, जो उन्हें 12 मार्च 2024 को दिलाई गई थी  जबकि वे विधायक थे, को इस तरह नहीं बढ़ाया जा सकता कि इसमें गैर-विधायक होने के नाते मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल हो, जो 24 मार्च 2024 की  बाद दोपहर  से प्रभावी हुआ है.


राष्ट्रपति सचिवालय के अंडर सेक्रेटरी
द्वारा 9 मई  को इस विषय पर हरियाणा के मुख्य सचिव को लिखकर मामले में आवश्यक करने एवं उसकी सूचना‌ याचिकाकर्ता को देने बारे  कहा गया हालांकि आज एक माह से ऊपर का समय बीत जाने के बाद भी  हरियाणा सरकार से  कोई जवाब‌ नहीं प्राप्त हुआ है.

हेमंत का कहना है  कि जब भी केंद्र सरकार या राज्य सरकार में नियुक्त किसी मंत्री का निर्वाचन (सांसद या विधायक के रूप में, जैसा भी मामला हो) संबंधित उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द या अमान्य घोषित कर दिया जाता है, तो ऐसे सांसद या विधायक को तत्काल  केंद्र सरकार  या राज्य सरकार  में  मंत्रीपद से इस्तीफा देना होता है. वह व्यक्ति यह तर्क नहीं दे सकता कि गैर-सांसद या गैर-विधायक के रूप में भी, वह सांसद या विधायक के रूप में अपने अयोग्य होने होने की तिथि से अधिकतम छह महीने तक केंद्र  या राज्य सरकार  में मंत्री के रूप में बना  रह सकता है.

बेशक, यदि अगर देश के  प्रधानमंत्री या राज्य के मुख्यमंत्री ऐसा चाहते हैं, तो ऐसे व्यक्ति को, जिसका   सांसद या विधायक के रूप में निर्वाचन रद्द कर दिया गया हो, उसे केंद्र सरकार  या राज्य सरकार  में नए सिरे , लेकिन केवल एक बार के लिए, गैर-सांसद या गैर-विधायक तौर पर  मंत्री नियुक्त किया जा सकता है और वह भी अधिकतम छह महीने के लिए, हालांकि  इसके लिए उस व्यक्ति को भारत के  राष्ट्रपति या उस प्रदेश  के राज्यपाल द्वारा पद और गोपनीयता की नई शपथ दिलाई जाती है.