Sirsa Loksabha Seat: हरियाणा की सिरसा सीट पर फलौदी सट्टा बाजार का बदलता रुख, तंवर के राजयोग मजबूत, सैलजा को भीतरघात का डर

 
Sirsa Loksabha Seat: हरियाणा की सिरसा सीट पर फलौदी सट्टा बाजार का बदलता रुख, तंवर के राजयोग मजबूत, सैलजा को भीतरघात का डर4444
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Sirsa Loksabha Seat: हरियाणा की सिरसा लोकसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। यह आरक्षित सीट है और इनेलो के गढ़ की यह सीट मानी जाती है। इस सीट पर 20 लाख के करीब वोटर हैं।

अशोक तंवर के सितारे मजबूत, सैलजा को भीतरघात का डर, पूरा आर्टिकल नीचे तक पढ़ें। धन्यवाद

19 लाख 20 हजार मतदाताओं पर आधारित सिरसा संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनावों को लेकर अब शह-मात का खेल शुरू हो गया है। हरियाणा बनने से पहले सिरसा लोकसभा क्षेत्र फाजिल्का तक फैला था और इस सीट का नाम सिरसा-फाजिल्का था। 1957 और 1962 में सिरसा जिला हिसार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा रहा। पहली बार 1967 में सिरसा लोकसभा सीट पर चुनाव हुआ। 

Sirsa Loksabha Seat: हरियाणा की सिरसा सीट पर फलौदी सट्टा बाजार का बदलता रुख, तंवर के राजयोग मजबूत, सैलजा को भीतरघात का डर22

सिरसा संसदीय क्षेत्र में हरियाणा का 50 फीसदी नरमे का उत्पादन होता है। इसी तरह से इस क्षेत्र में प्रदेश में सबसे अधिक 40 हजार हैक्टेयर में किन्नू के बाग हैं। सबसे अधिक गेहूं का उत्पादन यहां होता है और सबसे अधिक गौशालाएं भी इसी क्षेत्र में हैं। बावजूद इसके यह क्षेत्र पिछड़ेपन का शिकार है।

सिरसा संसदीय सीट पर वोटों की संख्या में 19 लाख से अधिक मतदाता होने के चलते समीकरण रोचक बन गए हैं। अतीत के चुनावी पन्नों और विजेता प्रत्याशियों को मिले वोट अनुपात की बात करें तो इस बार जीतने वाले प्रत्याशी को 7 लाख से अधिक वोट हासिल करने होंगे। अगर मुकाबला दो दलों में हुआ तो यह जीतने वाले प्रत्याशी को 8 लाख तक वोट लेने होंगे। त्रिकोणिय मुकाबला होने की सूरत में 6 लाख लेने वाला प्रत्याशी जीत की दहलीज तक पहुंच सकता है।

दरअसल सिरसा मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की तुलना में सिरसा संसदीय क्षेत्र में 1,20,793 मतदाता बढ़े हैं। इस सिलसिले में अभी हाल में निर्वाचन आयोग की ओर से ताजा मतदाता सूची प्रकाशित की गई है। 

Sirsa Loksabha Seat: हरियाणा की सिरसा सीट पर फलौदी सट्टा बाजार का बदलता रुख, तंवर के राजयोग मजबूत, सैलजा को भीतरघात का डर 4444

मई 2009 के लोकसभा चुनाव के वक्त सिरसा संसदीय सीट के नौ विधानसभा क्षेत्रों में 13 लाख 4 हजार 171 मतदाता थे, जबकि 2014 में 16 लाख 38 हजार 240 मतदाता थे। 2019 में 17,99,949 मतदाता थे अब मतदाताओं की संख्या 19 लाख 20 हजार हो गई है। 

आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2004 के चुनाव में कांग्रेस के आत्मा सिंह गिल ने 3 लाख 49 हजार वोट लेते हुए डा. सुशील इंदौरा को करीब 62 हजार वोट से हराया। 2009 में कांग्रेस के डा. अशोक तंवर ने 4 लाख 15 हजार वोट लेते हुए इनैलो के डा. सीताराम को करीब 35 हजार वोटों से जबकि 2014 में इनैलो के चरणजीत रोड़ी को 1 लाख 15 हजार वोट से हराया।

2019 में मोदी लहर में सुनीता दुगल ने 7 लाख 14 हजार वोट लेते हुए कांग्रेस के अशोक तंवर को 3 लाख 9 हजार वोटों से हराया। इस बार जीतने वाले प्रत्याशी को 6 से 8 लाख तक वोट हासिल करने होंगे।

ashok tanwar in chunav

तीन बार कांग्रेस से चुनाव लड़ चुके डा. अशोक तंवर पर भाजपा ने खेला दांव

सिरसा लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर तीन चुनाव लड़ चुके और एक बार 2009 में सांसद रह चुके डा. अशोक तंवर को भारतीय जनता पार्टी ने सिरसा से उम्मीदवार बनाया है। विशेष बात यह है कि इसी साल 20 जनवरी को वे आम आदमी पार्टी को अलविदा कहते हुए भगवा पार्टी में शामिल हुए थे। 

वे युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अलावा हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। विशेष बात यह है कि पिछले चुनाव में भाजपा से चुनाव लड़ते हुए सुनीता दुग्गल ने कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे डा. अशोक तंवर को 3 लाख 9 हजार वोटों के अंतर से हराया था। अब सुनीता दुग्गल की टिकट काटकर डा. तंवर को प्रत्याशी बनाया गया है।

डा. अशोक तंवर का जन्म 12 फरवरी 1976 को झज्जर के गांव चिमनी में हुआ। डा. तंवर के पिता भारतीय सेना में रहे हैं। उन्होंने काकतिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। 

Ashok tanwar

इसके बाद उन्होंने देश के प्रतिष्ठित संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए., एम.फिल. और पी.एच.डी. की डिग्री हासिल की। साल 1999 में उन्हें एन.एस.यू.आई. का सचिव और साल 2003 में प्रधान बनाया गया। फरवरी 2005 में उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और वे इस पद पर फरवरी 2010 तक रहे। इस बीच अप्रैल 2009 में कां्रगेस नेतृत्व ने उन्हें सिरसा से उम्मीदवार बनाया गया। 

डा. अशोक तंवर ने इनैलो के डा. सीताराम को 35001 वोटों से हरा दिया। लोकसभा चुनावों से कुछ पहले फरवरी 2014 में उन्हें हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया तो सितंबर 2019 में उन्हें इस पद से हटाकर कुमारी सैलजा को अध्यक्ष बनाया गया। 

करीब दो दशक तक कांग्रेस की सियासत में सक्रिय रहने के बाद 5 अक्तूबर 2019 को उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया। 26 फरवरी 2021 को उन्होंने अपना भारत मोर्चा का गठन किया। नवंबर 2021 में वे तूणमुल कांग्रेस में शामिल हो गए और उसके कुछ समय बाद ही अप्रैल 2022 में आम आदमी पार्टी में आ गए। बाद में आम आदमी पार्टी को भी छोड़ दिया और इस साल 20 जनवरी को वे भाजपा में शामिल हो गए। उनके भाजपा में शामिल होने के कुछ दिनों के भीतर ही उन्हें सिरसा से पार्टी ने उम्मीदवार भी बना दिया।

kumari shelja

कांग्रेस ने कुमारी सैलजा पर खेला दांव

सैलजा ने 1988 में उपचुनाव के जरिए सियासत में प्रवेश करते हुए सिरसा से ही अपनी सियासी पारी की शुरूआत की थी। बाद में 1998 का चुनाव हारने के बाद कुमारी सैलजा ने सिरसा में कांग्रेस की कथित गुटबाजी से आहत होकर अपना संसदीय क्षेत्र बदल लिया और 2004 में अंबाला से चुनाव लड़ा व सांसद चुनी गईं। दरअसल साल 1988 में अपने पिता चौ. दलबीर सिंह के निधन के बाद कुमारी सैलजा ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा। 

सिरसा संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में वे जनता पार्टी के प्रत्याशी हेतराम से हार गई। 1991 में सिरसा लोकसभा सीट से 2,87,927 वोट लेते हुए कुमारी सैलजा ने जनता पार्टी के हेतराम को 99098 वोटों से पराजित किया और पहली बार लोकसभा की सदस्य निर्वाचित हुईं। 1996 में 2,75,459 वोट लेते हुए उन्होंने समता पार्टी के उम्मीदवार डा. सुशील इंदौरा को 15,147 वोटों के अंतर से पराजित किया। 

1998 का चुनाव वे हार गई और उसके बाद उन्होंने अपना निर्वाचन क्षेत्र बदल लिया। इसके बाद वे 2004 और 2009 में अंबाला से सांसद चुनी गईं। 

विशेष बात यह है कि सैलजा पहली ऐसी महिला नेत्री हैं जो कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष के पद तक पहुंची हंै। सैलजा 2004 में मनमोहन सरकार में वे आवास एवं गरीब उन्मूलन मंत्री रहीं। 2009 से 2012 तक वे सामाजिक अधिकारिता, जबकि 2012 से 2014 तक पर्यटन मंत्री रहीं। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाया।

चौधरी दलबीर सिंह की राजनीतिक लड़ाई

सिरसा लोकसभा सीट पर अब तक हुए 14 सामान्य एवं एक आम चुनाव में चौधरी दलबीर सिंह इकलौते ऐसे नेता हैं तो सबसे अधिक 4 बार यहां से सांसद चुने गए हैं। सबसे पहले वे 1967 में सांसद निर्वाचित हुए थे। उनकी बेटी कुमारी सैलजा भी दो बार सिरसा से सांसद रह चुके हैं। यही नहीं दलबीर सिंह व कुमारी सैलजा दोनों केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। 

चौधरी दलबीर सिंह का जन्म 5 मार्च 1926 को हिसार के प्रभु वाला गांव में हुआ रोहतक के राजकीय कालेज से उन्होंने ग्रेजुएशन किया। विद्यार्थी जीवन से ही चौधरी दलबीर सिंह समाजसेवा और राजनीति में सक्रिय हो गए थे। 1977 से लेकर 1979 तक भी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। 

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहने के अलावा वे महासचिव भी रहे। इसके अलावा प्रदेश चुनाव समिति के भी अध्यक्ष रहे। चौधरी दलबीर सिंह तीन बार लोकसभा के सदस्य चुने गए। इसके अलावा वे 1952 से 1962 तक पंजाब विधानसभा के सदस्य भी रहे।

दो बार सांसद व 1 बार विधायक चुने गए हैं डा. इंदौरा

डा. सुशील इंदौरा 1998 और 1999 में दो बार लोकसभा के सदस्य चुने गए जबकि 2005 में ऐलनाबाद से विधायक बने। उनका जन्म 20 अगस्त 1962 को श्री गंगानगर के रायसिंह नगर में हुआ। उन्होंने लोहारु कस्बा के गांव सोहंसारा के प्राइमरी स्कूल से अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी की। 

इसके बाद हिसार के दयानंद कालेज से मैडीकल में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद रोहतक के मैडीकल कालेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री ली। 10 अक्तूबर 1990 को इंदौरा सरकारी सेवा में आ गए। उनकी पहली नियुक्ति कालूआना के मैडीकल कालेज में हुई। यहीं पर उन्हें राजनीतिक बुखार चढऩे लगा। 

वे सिरसा के नागरिक अस्पताल, ओढां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बड़ागुढ़ा और भट्टू में सेवारत रहे। 1996 में डा. इंदौरा ने सरकारी सेवा छोड़ दी। 1996 का चुनाव डा. इंदौरा कांग्रेस की कुमारी सैलजा से चुनाव हार गए। पहली बार इंदौरा 1998 में सांसद चुने गए और फिर 1999 में दूसरी बार सांसद चुने गए। 

साल 2005 में इंदौरा ऐलनाबाद से विधायक निर्वाचित हुए। 2009 में वे इनैलो से किनारा कर गए। 2009 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर कालांवाली से लड़ा, सफल नहीं हुए। इसके बाद हजकां में चले गए। 2014 में हजकां-भाजपा गठबंधन के बैनर तले उन्होंने सिरसा से चुनाव लड़ा। अब इंदौरा लंबे समय से कांग्रेस में ही सक्रिय हैं।

सिरसा लोकसभा आरक्षित सीट पर इस बार बीजेपी की तरफ से डॉ. अशोक तंवर, कांग्रेस की तरफ से कुमारी सैलजा, इनेलो के संदीप लोट और जजपा की तऱफ से रमेश खटक को यहां पर प्रत्याशी बनाया गया है। इसके अलावा कुछ निर्दलीय प्रत्याशी यहां पर चुनावी ताल ठोक रहे हैं। 

सिरसा लोकसभा में अब तक का चुनावी रिकॉर्डॉ
अब तक सिरसा सीट पर 14 आम जबकि 1 उपचुनाव है। कांग्रेस 8 बार, लोकदल 6 बार एवं 1 बार भाजपा को जीत मिली है। 1967, 1971, 1980 और 1984 में कांग्रेस से चौ. दलबीर सिंह, 1991 और 1996 में कांग्रेस से कुमारी सैलजा, 2004 में कांग्रेस से आत्मा सिंह गिल व 2009 में डा. अशोक तंवर, इसी तरह से 1977 में जनता पार्टी से चौधरी चांदराम, 1988 और 1989 में लोकदल से हेतराम, 1998 और 1999 में इनैलो से डा. सुशील इंदौरा, 2014 में इनैलो की टिकट पर चरणजीत रोड़ी एवं 2019 में भाजपा से सुनीता दुग्गल सांसद निर्वाचित हुईं।

प्रत्याशियों के लिए सहारा बनते हैं स्टार प्रचारक
1999 के संसदीय चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने रैली की तो इनैलो-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार डा. सुशील इंदौरा चुनाव जीत गए। 2004 में कांग्रेस प्रत्याशी आत्मा सिंह गिल के समर्थन में सोनिया गांधी ने रैली की तो गिल की भी नैय्या पार लग गई। 

पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फतेहाबाद में भाजपा प्रत्याशी सुनीता दुग्गल के पक्ष में एक रैली की तो दुग्गल 3 लाख 9 हजार वोटों से जीतकर सांसद बन गई। 2009 में राहुल गांधी की रैली हुई तो उनके ही साथी रहे डा. अशोक तंवर ने इनैलो के उम्मीदवार डा. सीताराम को 35 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया और पहली बार सांसद चुने गए।

सिरसा लोकसभा में विधानसभा वाइज मतदाता
विधानसभा               मतदाता
नरवाना        2,20,011
टोहाना        2,29,091
फतेहाबाद        2,56,819
रतिया            2,26,588
कालांवाली        1,84,476
डबवाली        2,05,122
रानियां        1,86,941
सिरसा        2,22,217
ऐलनाबाद        192,979
कुल            19,24,244

1890 मतदान केंद्रों में हैं 3502 सर्विस वोटर्स
सिरसा लोकसभा क्षेत्र में कुल 1890 मतदान केंद्र हैं। अगर विधानसभा अनुसार मतदान केंद्रों की बात करें तो नरवाना में 224, टोहाना में 227, फतेहाबाद में 237, रतिया में 224, कालांवाली में 187, डबवाली में 213, रानियां में 186, सिरसा में 204 व ऐलनाबाद में 188 मतदान केंद्र हैं। 

इसी तरह से 9 विधानसभा क्षेत्रों में  3502 सर्विस मतदाता हैं। नरवाना में 681, टोहाना में 444, फतेहाबाद में 626, रतिया में 397, कालांवाली में 451, डबवाली में 238, रानियां में 161, सिरसा में 186 एवं ऐलनाबाद में 318 सर्विस मतदाता हैं। इसी प्रकार से किन्नर मतदाताओं की संख्या 76 है।

चुनाव आयोग की ओर से जारी सूची के अनुसार नरवाना विधानसभा क्षेत्र में 2,22,013 मतदाता हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में नरवाना में लगभग 2,0,9756 मतदाता थे। ऐसे में यहां करीब 13,000 नए मतदाता और जुड़ गए हैं। इसी तरह से टोहाना में अब 2,27,522 मतदाता हैं, जो 2019 के विधानसभा चुनाव में 2,20,517 थे। 

इसी तरह से फतेहाबाद में 2,55,812 मतदाता हैं। 2019 में फतेहाबाद में 2,40,130 मतदाता थे। रतिया विधानसभा क्षेत्र में 2,25,504 मतदाता हैं। 2019 में यह संख्या 2,14,770 थी। कालांवाली में लगभग 10,000 मतदाता बढ़े हैं। अब यहां पर मतदाताओं की संख्या 1,87,976 है, जो 2019 में 1,70,723 थी। डबवाली में 2,04,344 मतदाता हैं, जो 2019 में 1,99,291 थे। 

इसी तरह से रानियां में अब 1,87,198 मतदाता हैं। 2019 में मतदाताओं की संख्या 1,80,084 थी। सिरसा में मतदाताओं की संख्या 2,18,405 है। 2019 में मतदाताओं की संख्या 2,07,519 मतदाता थी। इसी तरह से ऐलनाबाद में अब मतदाताओं की संख्या 1,91,759 है और 2019 में यहां पर मतदाताओं की संख्या 1,81,021 थी।

सिरसा लोकसभा का विधानसभा वाइज रिजल्ट (2019)
नरवाना
Bjp win-51323 (34.7%)
Bjp-82166 (55.56%)
Inc-30843 (20.85%)
Jjp-19769 (13.36%)
Inld-7172 (4.84%)

टोहाना
Bjp win-8868 (5.31%)
Bjp-71409 (42.76%)
Inc-62541 (37.45%)
Jjp-15387 (9.2%)
Inld-3102 (1.85%)

फतेहाबाद
Bjp win-75896 (42.46%)
Bjp-117443 (65.7%)
Inc-41547 (23.24%)
Jjp-6576 (3.67%)
Inld-5160 (2.88%)

रतिया
Bjp win-39682 (24.23%)
Bjp-89994 (55%)
Inc-50312 (30.77%)
Jjp-8470 (5.18%)
Inld-6734 (4.11%)

कालांवाली
Bjp win-20990 (15.23%)
Bjp-64439 (46.75%)
Inc-43449 (31.52%)
Jjp-11475 (8.32%)
Inld-12108 (8.78%)

डबवाली
Bjp win-8662 (5.83%)
Bjp-59280 (39.73%)
Inc-50618 (33.9%)
Jjp-17016 (11.4%)
Inld-15322 (10.26%)

रानियां
Bjp win-27309 (19.47%)
Bjp-71154 (50.74%)
Inc-43845 (31.27%)
Jjp-6632 (4.7%)
Inld-13272 (9.46%)

सिरसा
Bjp win-41214 (29.22%)
Bjp-83987 (59.6%)
Inc-42773 (30.38%)
Jjp-3355 (2.38%)
Inld-6328 (4.49%)


ऐलनाबाद
Bjp win-34659 (24.47%)
Bjp-72593 (51.27%)
Inc-37934 (26.8%)
Jjp-7045 (4.97%)
Inld-18749 (13.24%)


2019 लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड मतों से जीता था चुनाव
सिरसा जिला में जहां  सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड 2019 में बना तो सबसे अधिक वोट लेने का रिकॉर्ड साल 1977 में बना था। उस चुनाव में जनता दल की लहर थी और संयुक्त पंजाब के समय में मंत्री रह चुके चौधरी चांदराम जनता दल के उम्मीदवार थे। उन्होंने 68.44 फीसदी वोट हासिल करते हुए जीत दर्ज की थी। वे चार बार विधायक रहने के अलावा दो बार मंत्री भी रहे। 

दरअसल चौधरी चांदराम हरियाणा की राजनीति के अहम किरदार रहे। अनुसूचित जाति, पिछड़ों और कमरों को लेकर उन्होंने ताउम्र संघर्ष किया। हरियाणा की राजनीति में वे किंगमेकर की भूमिका में रहे। राव बीरेंद्र सिंह की सरकार बनाने में उनका योगदान रहा। 1977 में वे पहली बार सिरसा से सांसद बने थे। 

सिरसा संसदीय सीट पर अब तक हुए चुनावों में सबसे अधिक मत प्रतिशत हासिल करने का रिकॉर्ड चौधरी चांदराम के नाम ही है। 1977 में जनता दल की लहर थी और इस चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार चांदराम ने कुल 3 लाख 95 हजार 788 मतों में से 2 लाख 70 हजार 801 करीब 68.44 प्रतिशत मत हासिल करते हुए जीत हासिल की। यह रिकॉर्ड आज भी बरकरार है।

सिरसा संसदीय क्षेत्र में जातिगत समीकरण
1. अनुसूचित जाति
( मजहबी सिक्ख, चमार, वाल्मीकि, धानक व बाजीगर)        8.13 लाख

2. जाट समुदाय                        3.58 लाख
3. जट्ट सिख                            1.90 लाख
4. पंजाबी समुदाय 
(खत्री, अरोड़ा, मेहता)                    1.15 लाख
5. बाणिया                            90 हजार
6.  कम्बोज                            90 हजार
7. ब्राह्माण                            61 हजार
8. बिश्रोई                            48 हजार
9. पिछड़ा वर्ग
(कुम्हार, सैनी, अहीर, गुज्जर, खाती, सुनार)            1.41 लाख
अन्य (मुस्लिम, क्रिश्चियन, जैन आदि)                18 हजार
कुल                                19.20


सिरसा से अब तक बने सांसद
वर्ष        सांसद            पार्टी
1967        दलबीर सिंह        कांग्रेस
1971        दलबीर सिंह        कांग्रेस        
1977        चांदराम             जनता पार्टी    
1980        दलबीर सिंह        कांग्रेस        
1984        दलबीर सिंह        कांग्रेस        
1989        हेतराम            जनता दल    
1991        कुमारी सैलजा        कांग्र्रेस        
1996        कुमारी सैलजा        कांग्रेस        
1998        डा. सुशील इंदौरा        हलोदरा        
1999        डा. सुशील इंदौरा        इनैलो        
2004        आत्मा सिंह गिल        कांग्रेस        
2009        डा. अशोक तंवर        कांग्रेस        
2014        चरणजीत रोड़ी        इनैलो    
2019        सुनीता दुग्गल        भाजपा

2024 में कौन बनेगा सिरसा का सांसद
सिरसा लोकसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर है। यहां पर किसान आंदोलन का भी काफी असर देखने को मिल रहा है वहीं इनेलो के गढ में भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस की तरफ वोटरों का रुझान बढ़ रहा है।

अब तक चुनावी माहौल में भाजपा के अशोक तंवर और कांग्रेस की कुमारी सैलजा के बीच कांटे की टक्कर है। जानकारों की माने तो यहां पर काफी रोचक मुकाबला हो सकता है।

कांग्रेस की तरफ भाजपा सरकार के विरोध के वोट जा रहे हैं और यह वोटर काफी नाराजगी और गुस्से में है जिसकी वजह से कांग्रेस के कार्यक्रमों में भी इसका असर देखने को मिल रहा है। दूसरी तरफ भाजपा के पास एक बड़ा साइलेंट वोट बैंक है जो तंवर की नैया पार लगा सकता है।

क्या है फलौदी सट्टा बाजार का रूझान
चुनावी ओपिनियन में राजस्थान के फलौदी सट्टा बाजार का भाव काफी हद तक प्रभावित करता है। यहां पर सभी पार्टियों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद सट्टा बाजार का भाव भी लगातार सामने आ रहा है। फलौदी सट्टा बाजार में यहां पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जीत का आंकड़ा थोड़ा है और ये लगातार भाव बदल रहा है। चुनावी रण में उतरी सैलजा को शुरुआती दौर में अच्छा भाव मिल रहा था लेकिन पिछले 3 दिनों में भाजपा प्रत्याशी की मजबूती से समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं।

ज्योतिषों के गृह के मुताबिक तंवर मजबूत
ज्योतिष विद्या के जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी अशोक तंवर की किस्मत चमक सकती है। उनका ज्योतिष सितारा मजबूत स्थिति में है और उनके लिए राज के प्रबल योग बनते हुए दिखाई दे रहे हैं।

कांग्रेस और भाजपा के चुनाव प्रचार में क्या है फर्क ?
सिरसा लोकसभा सीट पर कांग्रेस और भाजपा के चुनाव प्रचार में भी काफी अंतर देखने को मिल रहा है। भाजपा की तरफ साइलेंट वोटर, पढ़े लिखा वर्ग ज्यादा प्रभावित है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की तरफ जो वोटर है वो बोल रहा है। यानि कांग्रेस और सरकार के विरोध का वोटर लगातार सोशल मीडिया, मीडिया में अपनी हाजिरी लगा रहा है।

भाजपा की क्या है आगे की रणनीति ?
भाजपा की तऱफ से स्थानीय नेताओं, विधायकों और गणमान्य लोगों से संपर्क किया जा रहा है। भाजपा के हार्डकोर वर्करों को भी माईक्रो मैनेजमेंट पर लगाया गया है और हर जगह पर 20 से 50 वोटरों पर एक वर्कर की ड्यूटी लगाई गई है। 

कांग्रेस की क्या है रणनीति ?
कांग्रेस की तरफ से हलके के हिसाब से स्थानीय नेता पूरा मैनेजमेंट कर रहे हैं। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में वोटर्स आपस में ही संचार प्रचार कर रहे हैं और वोटरों को लुभावने वादे दिये जा रहे हैं।

इनेलो का अब खुद के वोटरों पर फोकस
इनेलो के वरिष्ठ नेता अभय सिंह चौटाला के कुरुक्षेत्र में लोकसभा चुनाव लड़ने के चलते सिरसा लोकसभा सीट पर इनेलो का प्रभाव कम हो रहा है। हालांकि अब इनेलो की तरफ से किसानों और खुद के वोटरों को एकत्रित करके पार्टी के पक्ष में ज्यादा से ज्यादा मतदान की अपील की जा रही है।

सैलजा को सता रहा भीतरघात का डर
दरअसल सिरसा लोकसभा क्षेत्र में हुड्डा गुट का खासा प्रभाव है। सिरसा संसदीय क्षेत्र की 9 विधानसभा सीटों पर जहां हुड्डा खेमे के नेता मजबूत है जबकि SRKB खेमे के नेता इतने सक्रिय नहीं रहे हैं जिसके चलते हुड्डा गुट काफी प्रभावी रहा है।

कुछेक ऐसे हलके भी हैं अगर वहां पर गुटबाजी और भीतरघात होती है तो फिर कांग्रेस को काफी नुकसान होगा और भाजपा एक अच्छे मार्जिन से चुनाव जीत सकती है।

क्या मानते हैं राजनीतिक सलाहकार ?
राजनीति के जानकार कांग्रेस की गुटबाजी को लेकर बताते हैं कि अगर यहां पर सैलजा जीत दर्ज करती है तो 9 हलकों में आगामी विधानसभा चुनावों में भी सैलजा गुट का प्रभाव दिखेगा। यहां पर सैलजा गुट के नेताओं को विधानसभा का टिकट मिलेगा और हुड्डा गुट के नेताओं की छुट्टी हो सकती है, इसलिए यहां पर भीतरघात की प्रबल संभावना है।