हरियाणा के नव-निर्वाचित दो-तिहाई विधायकों की ताज़ा शपथ अथवा प्रतिज्ञान के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल को ज्ञापन
गत माह 25 अक्टूबर को नव-गठित 15वीं हरियाणा विधानसभा के बुलाए गए प्रथम सत्र के पहले दिन प्रदेश के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय द्वारा विशेष रूप से नियुक्त कार्यवाहक (प्रो-टेम) स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान द्वारा नव-निर्वाचित 60 से अधिक अर्थात दो-तिहाई विधानसभा सदस्यों को विधायक पद के लिए दिलाई गई शपथ (अथवा प्रतिज्ञान) पर गंभीर सवाल उठ गया है
एवं उसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 188 और संविधान की ही तीसरी अनुसूची में शपथ (अथवा प्रतिज्ञान) के लिए दिए गये फॉर्म (प्ररूप) की संपूर्ण अनुपालना नहीं किए जाने का विषय उठाया गया है जिसके फलस्वरूप उन सभी विधायकों को ताज़ा शपथ दिलाने अथवा प्रतिज्ञान कराये जाने की अपील की गई है.
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और संसदीय मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने गत दिवस 11 नवम्बर को देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, हरियाणा के राज्यपाल, विधानसभा स्पीकर हरविंद्र कल्याण एवं अन्य को इस सम्बन्ध एक ज्ञापन भेजा जिसे उसी दिन ही राष्ट्रपति सचिवालय में अंडर सेक्रेटरी गौरव कुमार ने उपरोक्त याचिका को केंद्रीय गृह मंत्रालय में आगामी आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दिया एवं इस सम्बन्ध में की गई कार्रवाई बारे याचिकाकर्ता को सीधे सूचित करने को भी लिखा है.
हेमंत ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 188 के अंतर्गत राज्य की विधानसभा का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या उसके द्वारा इस निमत नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररूप के अनुसार शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा.
अब इसे हरियाणा विधानसभा सचिवालय के संबंधित अधिकारियों अथवा कर्मियों की या तो लापरवाही कहा जा सकता है या उनसे जाने-अनजाने हुई एक गंभीर चूक कि उन्होंने मौजूदा नव-गठित विधानसभा सदन के नव-निर्वाचित सदस्यों द्वारा विधायक पद की शपथ लेने का ऐसा ड्राफ्ट फॉर्म (प्ररूप) तैयार करके उनके हाथों में दिया जिसे पढ़कर सदन में सर्वप्रथम शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, उनके बाद उनके मंत्रिपरिषद के 6 सदस्य नामत: कृष्ण लाल पंवार, महिपाल ढांडा, श्याम सिंह राणा, रणबीर गंगवा, आरती सिंह राव और गौरव गौतम एवं डिप्टी स्पीकर डॉ. कृष्ण लाल मिड्ढा और तत्पश्चात अनेक नव-निर्वाचित विधायकों ने प्रो-टेम स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान के समक्ष विधायक पद के लिए ईश्वर की शपथ के साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान भी कर लिया जबकि इनमें अर्थात शपथ अथवा प्रतिज्ञान में से किसी एक का ही प्रयोग किया जा सकता है दोनों का नहीं.
हेमंत ने आगे बताया कि भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची में राज्य विधानसभा के सदस्य (विधायक) द्वारा ली जाने वाली शपथ या किये जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप है जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि मैं, अमुक (विधायक का नाम), जो विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ / ( अथवा) / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ की मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा.
मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा और जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा.
इस प्रकार भारत के संविधान के तीसरी अनुसूची में दिए गये उपरोक्त प्ररूप के अनुसार विधानसभा के हर नव-निर्वाचित सदस्य को यह विकल्प दिया गया है कि अगर वह ईश्वर में आस्था रखने वाला अथवा आस्तिक है, तो वह ईश्वर के नाम से विधायक पद की शपथ ले सकता है अथवा अगर वह इस प्रकार ईश्वर की शपथ नहीं लेना चाहता है, तो वह सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान (सोलेम्नी अफ्फिर्म) भी कर सकता है परन्तु एक ही समय पर दोनों का एक साथ प्रयोग नहीं किया जा सकता है.
हैरानी की बात यह है की जब ऐसा किया जा रहा था, तब न तो प्रो-टेम स्पीकर डॉ. रघुबीर कादयान और न ही विधानसभा सचिव डॉ. सतीश कुमार अथवा किसी अन्य विधानसभा के अधिकारी द्वारा इस विषय पर हस्तक्षेप किया गया.