हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग को 19 साल बाद भी नहीं कानूनी दर्जा, हुड्डा सरकार में कराया था निरस्त

 
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग को 19 साल बाद भी नहीं कानूनी दर्जा
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19 वर्षों  बाद भी  हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) को  कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं


कैबिनेट मंत्री, मुख्य सचिव और विधि परामर्शी (एल.आर.) की कमेटी करती है एच.एस.एस.सी.  चेयरमैन और सदस्यों का चयन


दिसम्बर, 2004 में चौटाला सरकार  ने बनाया  एच.एस.एस.सी. अधिनियम परन्तु    मार्च, 2005 में  हुड्डा सरकार ने सत्ता संभालते ही विधानसभा से  कराया निरस्त  -- एडवोकेट


चंडीगढ़ -   हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एच.एस.एस.सी.) के नए चेयरमैन के तौर पर प्रदेश सरकार द्वारा  हरियाणा के एडवोकेट  जनरल - ए.जी.  (महाधिवक्ता)  कार्यालय  में   बतौर एडिशनल एडवोकेट जनरल के तौर पर तैनात  हिम्मत सिंह का नाम फाइनल किया गया है. 

हालांकि चूँकि बीते दो माह अर्थात 16  मार्च से देश भर में 18 वीं लोकसभा आम चुनाव के दृष्टिगत आदर्श आचार संहिता लागू है जो आगामी 6  जून तक जारी रहेगी, इसलिए हिम्मत सिंह की एच.एस.एस.सी. चेयरमैन के तौर पर नियुक्ति आदेश जारी करने के लिए राज्य सरकार ने मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ) मार्फ़त भारतीय चुनाव आयोग से स्वीकृति मांगी है.

चूँकि हिम्मत सिंह रोड़ वर्ग से   हैं इसलिए उनकी प्रस्तावित नियुक्ति पर प्रदेश के  रोड़ समाज द्वारा प्रदेश सरकार का आभार जताया गया है. वहीँ चूँकि  करनाल और कुरुक्षेत्र ज़िलों में रोड़ समाज के लोग (मतदाता) अधिक संख्या में है और करनाल से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल लोकसभा सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं 

और उनके विरूद्ध रोड़ वर्ग से मराठा वीरेंद्र वर्मा चुनावी मैदान में हैं, इस कारण मतदान से करीब दो सप्ताह  दिन पूर्व गरमाये  चुनावी माहौल  में रोड़  वर्ग से एच.एस.एस.सी. चेयरमैन की नियुक्ति होने पर सवाल भी उठ रहे हैं. रोचक बात यह है कि प्रदेश के  मुख्यमंत्री नायब सैनी स्वयं भी करनाल विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रहे हैं.

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि मौजूदा लागू व्यवस्था अनुसार एच.एस.एस.सी. में चेयरमैन  को मिलाकर कुल सात सदस्य हो सकते हैं जिनका चयन तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाता है जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री, प्रदेश के मुख्य सचिव और प्रदेश के विधि परामर्शी (एल.आर. ) अर्थात विधि एवं विधायी विभाग के सचिव  तीनो सदस्य होते है. 

चूँकि दो महीने पूर्व  12 मार्च को प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ जब मनोहर लाल के स्थान पर नायब सैनी नए मुख्यमंत्री बने और उनके तीन दिन बाद 15 मार्च बाद दोपहर तत्कालीन  मुख्य सचिव संजीव कौशल के स्थान पर टी.वी.एस.एन. प्रसाद को मुख्य सचिव बनाया गया एवं  उसके अगले ही  दिन  16 मार्च से आचार संहिता लागू हो गयी, 

इसलिए यह देखने लायक है कि क्या एच.एस.एस.सी. के नए चेयरमैन हिम्मत सिंह के  चयन में क्या पूर्व खट्टर सरकार के कैबिनेट मंत्री और पूर्व मुख्य सचिव संजीव कौशल शामिल थे या उनके बाद  उस पद पर आसीन पदाधिकारी. यह भी गौर करने योग्य है कि क्या तीन सदस्यीय कमेटी ने केवल एच.एस.एस.सी चेयरमैन का चयन किया या आयोग में अधिकतम छः अन्य सदस्यों का भी. 

हेमंत ने आगे बताया कि ऐसा सुनने और पढ़ने में भले ही  आश्चर्यजनक प्रतीत हो परन्तु सत्य यही है कि प्रदेश में  आज तक लाखों  सरकारी कर्मचारियों (राजकीय विभागों के अतिरिक्त प्रदेश  के  सरकारी  बोर्डों, निगमों आदि हेतु  भी ) के लिए चयन करने वाले हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग --  एच.एस.एस.सी. (पूर्व नाम अधीनस्थ सेवाएं चयन बोर्ड --एस.एस.एस.बी.) को वर्तमान तौर पर  कानूनी दर्जा ही प्राप्त नहीं है 

और यह आयोग  प्रदेश  के मुख्यमंत्री के सीधे अधीन आने वाले  जनरल एडमिनिस्ट्रेशन ( सामान्य प्रशासन) विभाग  (मानव संसाधन- एच.आर. शाखा )  के एक अधीनस्थ कार्यालय के तौर पर काम  कर रहा है.  इसका संचालन  54  वर्षो पूर्व जनवरी, 1970 को  तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा   जारी एक गजट नोटिफिकेशन से,  जिसमें आज तक समय समय पर सम्बंधित राज्य सरकारों द्वारा  मनमर्जी से सैंकड़ों बदलाव किये जाते रहे हैं, से ही किया जा रहा है. 

एडवोकेट ने  आगे   बताया कि साढ़े  19 वर्ष पूर्व  दिसंबर,2004 में हरियाणा कि तत्कालीन चौटाला सरकार ने प्रदेश  विधानसभा मार्फ़त   हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग अधिनियम, 2004 बनवा एच.एस.एस.सी. को वैधानिक (कानूनी )  मान्यता प्रदान की थी परन्तु तीन माह बाद ही  मार्च, 2005 में  जब भूपेंद्र  हुड्डा  प्रदेश के मुख्यमंत्री बने,  तो उन्होंने नई  विधानसभा के पहले ही सत्र  में  हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (निरसन ) विधेयक, 2005 सदन से पारित करवाकर  आयोग को मिला कानूनी दर्जा समाप्त करवा दिया था. 

हालांकि इसके लिए  दोनों सरकारों (मुख्यमंत्रियों ) की अपनी अपनी मजबूरी थी. चौटाला चाहते थे कि वर्ष  2005 विधानसभा आम चुनावो के बाद  अगर उनके  हाथ से  सत्ता चली गयी, तो इसके बावजूद   उनके द्वारा नियुक्त  आयोग के चेयरमैन और सदस्य अपने अपने  पद पर कायम रह सकें  जबकि हुड्डा जब मुख्यमंत्री बने तो वह चौटाला सरकार द्वारा नियुक्त आयोग के  चेयरमैन और सदस्य हटाकर  अपनी मनमर्जी के चेयरमैन और सदस्य नियुक्त करना चाहते थे. 

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री  मनोहर लाल खट्टर  के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अपने साढ़े नौ वर्षो के लम्बे कार्यकाल में भी हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के लिए विधानसभा मार्फ़त ताज़ा कानून नहीं बनवाया.