Haryana News : अनुबंध कर्मियों को लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने लिया बड़ा फैसला, जानें क्या है नया नियम

 पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी विभागों में अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर कार्यरत कर्मचारियों के विषय में अहम निर्णय दिया है।
 
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Haryana News : पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी विभागों में अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) पर कार्यरत कर्मचारियों के विषय में अहम निर्णय दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य द्वारा विशेष अवधि के लिए रखे कर्मचारी की सेवा समाप्त होने के बाद, उसे दोबारा बहाल या सेवा विस्तार के लिए हाईकोर्ट प्रशासन पर दबाव नहीं डाल सकता।

सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला

जस्टिस सुवीर सहगल ने सुप्रीम कोर्ट के कई आदेशों का हवाला देते हुए ये निर्णय जारी किया है। उनके आदेशानुसार, जब नियुक्ति कांट्रैक्ट पर हो और नियुक्ति का तय समय समाप्त हो चुका हो तो ऐसी स्थिति में कर्मचारी को सेवा विस्तार का कोई अधिकार नहीं है।


पवन कुमार पुंडीर की याचिका पर सुनवाई


बता दें कि 5 अक्टूबर 2021 को पवन कुमार पुंडीर को उनके नियोक्ता ने सेवा समाप्ति का आदेश जारी कर दिया था। इसके खिलाफ पुंडीर ने हाईकोर्ट में याचिका डाली थी जिसे उपरोक्त टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।

क्या है पूरा मामला

प्रदेश सरकार ने वर्ष अगस्त 2017 में आई.टी. पेशेवरों के लिए, एक व्यापक अनुबंध नीति को अधिसूचित की थी। हरियाणा सरकार मे 10 दिसंबर 2018 को एक विज्ञापन जारी किया और विभिन्न पदों के लिए आईटी पेशवरों को आवेदन मांगे गए। इसमें संयुक्त मुख्य आईटी अधिकारी का पद भी शामिल था।

पुंडीर ने भी आवेदन कर दिया और साक्षात्कार दिया। इन्हें 24 मई 2019 को नियुक्ति दे दी गई। 19 अगस्त, 2019 को इलैक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग और याचिकाकर्त्ता के माध्यम से हरियाणा के बीच अनुबंध के नियमों और शर्तों को पूरा करने के लिए एक समझौता हुआ 9 अक्तूबर 2020 को कारण बताओं नोटिस दिया गया और उसकी सेवाओं को कॉन्ट्रैक्ट की शर्तोंनुसार समाप्त कर दिया गया।

इस तर्क के आधार पर हुआ फैसला

सरकार का तर्क है कि पद के लिए जारी विज्ञापन के अनुसार याचिकाकर्ता के पास जरूरी योग्यता नहीं हैं। एमसीए करने के बाद याचिकाकर्त्ता के पास 11 साल और 10 महीने का अनुभव है, जबकि 21 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। वहीं याचिकाकर्त्ता का तर्क है उसका अनुबंध नॉन-परफोर्मेंस या दुराचार के आधार पर समाप्त किया जा सकता है, लेकिन विवादित आदेश ऐसे किसी भी आरोप पर आधारित नहीं हैं।