हरियाणा में नगर निकाय के ताज़ा चुनाव से पहले नगर निगम कानून में संशोधन आवश्यक

 
हरियाणा में नगर निकाय के ताज़ा चुनाव से पहले नगर निगम कानून में संशोधन आवश्यक
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 50 महीने  पूर्व  19 सितम्बर 2020  से   हरियाणा  म्युनिसिपल  (संशोधन) कानून, 2020 लागू  हुआ. यह कानून  इसलिए पारित करवाया गया था   ताकि प्रदेश में  नूंह जिला मुख्यालय  पर स्थापित  नगर परिषद, जो हालांकि तब नगरपालिका थी, उसे कानूनी तौर पर नगर परिषद घोषित किया जा सके. 

ज्ञात रहे कि फरवरी 2021 से पूर्व  नूंह  जिला मुख्यालय पर  नगरपालिका होती  थी. वहां   की जनसँख्या   कम होने के कारण  कानूनी रूप से नूहं नगर पालिका को  नगर परिषद  घोषित नहीं  किया जा सकता था क्योंकि हरियाणा  म्यूनिसिपल कानून, 1973  के अनुसार  शहरी क्षेत्र में नगर परिषद स्थापित करने  हेतु न्यूनतम पचास  हज़ार की जनसंख्या  आवश्यक है.

इसलिए नूंह नगर पालिका को कम जनसंख्या बावजूद   नगर परिषद के तौर पर अपग्रेड करने   के लिए  हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973   की  धारा 2 ए में संशोधन  करना आवश्यक  था.  

तत्कालीन  भाजपा-जजपा गठबंधन  सरकार द्वारा विधानसभा से  संशोधन करवा उक्त कानूनी  धारा में   यह उल्लेख  कर दिया गया था  कि हर  जिला मुख्यालय पर विद्धमान /स्थापित  म्युनिसिपेलिटी ( नगर निकाय) वहां की  जनसंख्या पर विचार किये बिना नगर परिषद होगी".

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट  हेमंत कुमार ने बताया कि उपरोक्त संशोधन से नूंह जिला मुख्यालय पर स्थापित तत्कालीन नगर पालिका तो 50 हजार की आबादी के कम होने के बावजूद  नगर परिषद बन  गई और अढ़ाई वर्ष पूर्व  जून, 2022 में प्रदेश में 46 नगर निकायों के आम चुनाव दौरान नूंह नगर परिषद के प्रथम  चुनाव भी  करवा लिए गये

हालांकि  उक्त संशोधन कानून में प्रदेश के  जिला मुख्यालयों पर वर्षो पहले  से  विद्धमान/स्थापित मुनिसिपलिटीस का दर्जा नगर परिषद का उल्लेख होने  से प्रदेश  की 9  जिला मुख्यालयों पर स्थापित नगर निगमों का कानूनी अस्तित्व ही  समाप्त हो गया  और वह उपरोक्त  कानूनी संशोधन फलस्वरूप नगर  परिषद बन गई. अब ऐसा सुनने और पढ़ने में भले ही आश्चर्यजनक प्रतीत हो परंतु सत्य यही है.


हेमंत  ने बताया कि उक्त संशोधन कानून के लागू होने के   फलस्वरूप   प्रदेश के  9 जिला मुख्यालयों - अम्बाला, पंचकूला, करनाल, पानीपत, यमुनानगर, हिसार, रोहतक, सोनीपत और गुरुग्राम  पर  बीते कई  वर्षो से मौजूद नगर निगमें  कानूनी और तकनीकी तौर पर नगर परिषदें बन गईं  है

चूँकि  उक्त  कानून द्वारा हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973, जिसमें प्रदेश की सभी नगर निकायों का वर्गीकरण है, में डाले गये एक प्रावधान  अनुसार  हर  जिला मुख्यालय पर विद्धमान /स्थापित  म्युनिसिपेलिटी (नगर निकाय ) का  दर्जा  नगर परिषद का होगा   बेशक वहां की जनसंख्या कितनी ही  हो.


उन्होंने आगे    बताया कि न केवल  भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 (क्यू)  अनुसार बल्कि   हरियाणा म्युनिसिपल  अधिनियम, 1973 एवं  हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994  अर्थात हरियाणा में नगर निकायों के  मौजूदा दोनों  कानूनों  में  म्युनिसिपेलिटी शब्द  का कानूनी अर्थ होता   है- नगर पालिका, नगर परिषद या नगर निगम.


इस कारण उपरोक्त संशोधन कानून लागू होने के बाद   हरियाणा के हर जिला मुख्यालय की हर म्युनिसिपेलिटी वर्तमान में कानूनन नगर परिषद  है. हालांकि चूँकि  फरीदाबाद  नगर निगम का स्पष्ट उल्लेख हरियाणा नगर निगम  कानून, 1994 की धारा 3 में किया गया है इसलिए उसका  कानूनी अस्तित्व बच गया.

वहीं चार वर्ष पूर्व   दिसंबर, 2020 में  घोषित  मानेसर नगर निगम भी  कानूनन वैध है क्योंकि मानेसर जिला मुख्यालय नहीं है चूंकि वह गुरुग्राम ज़िले के भीतर ही पड़ता है.

ज्ञात रहे  कि हरियाणा म्युनिसिपल  कानून, 1973  की धारा 2 ए में हरियाणा की सभी मुनिसिपलिटीस  का वर्गीकरण है जिसके अनुसार 50 हज़ार तक की जनसँख्या वाले छोटे शहरों  में नगरपालिका समिति  (म्युनिसिपल कमेटी),  50 हज़ार से  तीन लाख तक  आबादी वाले   मध्यम  शहरो में नगर परिषद (म्युनिसिपल कौंसिल )  जबकि तीन लाख से ऊपर की जनसँख्या वाले बड़े शहरों /महानगरों में नगर निगम (म्युनिसिपल कारपोरेशन) का प्रावधान है.


हेमंत  ने बीते चार   वर्षों   में  प्रदेश के  शहरी  स्थानीय निकाय  विभाग के तत्कालीन मंत्री रहे  डॉ. कमल गुप्ता, विभाग के  प्रशासनिक सचिव  और  निदेशक और उच्च अधिकारियों  को  इस विषय पर  कई बार लिखकर  हरियाणा म्युनिसिपल कानून, 1973 की धारा 2 ए में पुनः उपयुक्त  संशोधन करने की अपील की ताकि प्रदेश की उपरोक्त  9 नगर निगमों का कानूनी अस्तित्व कायम रखा जा सके   परन्तु दुर्भाग्यवश आज तक इस विषय में  कोई कार्रवाई नहीं की गयी है.