पांच हत्या कर की आत्महत्या: प्रथम दृष्टया आशंका कि पहले नशीला पदार्थ खिलाकर किया बेहोश, फिर दबाया गला
अंबाला में फंदे पर झूलकर आत्महत्या करने वाले सुखविंद्र के माता-पिता, पत्नी व दोनों मासूम बच्चे बेड पर मृत पड़े थे। इस मामले में जांच जारी है और परिजनों की जान कैसे ली गई, इसकी पुष्टि में भी पुलिस जुटी हुई है। इसका खुलासा डॉक्टरों की पोस्टमार्टम व विसरा रिपोर्ट के बाद ही होगा।
दूसरी ओर, पुलिस की प्रथम दृष्टया जांच में यह आशंका जताई जा रही है कि पहले परिजनों को कोई नशीला पदार्थ खिलाकर बेहोश किया गया और उसके बाद गला घोंटकर उनको मारा गया ताकि इस दौरान कोई विरोध न कर सके। साथ ही पुलिस इस एंगल पर भी जांच कर रही है कि कहीं परिजनों को उनके खाने में जहर देकर तो नहीं मारा गया। इसके लिए सीन ऑफ क्राइम की टीम ने घर स कुछ चीजें भी अपने कब्जे में ली हैं।
उधर, डॉक्टरी जांच में भी यह बात सामने आई है कि रात को सभी परिजनों ने अच्छे से खाना खाया था और बच्चों ने दूध भी पीया था। रिपोर्ट के अनुसार परिजनाें की मौत भी रात्रि 12 बजे से लेकर 2 बजे के बीच हुई है। यानी उसके बाद ही सुखविंद्र ने फंदा लगाकर जान दी।
पोस्टमार्टम करवाने के बाद परिवार के सभी छह सदस्यों का विसरा जांच के लिए भेज दिया गया है। रिपोर्ट आने के बाद ही कारणों का खुलासा हो पाएगा। पुलिस को दी शिकायत में सुखविंद्र सिंह के जीजा सतीश ने बताया कि सुखविंद्र 23 अगस्त को उससे ढाई लाख रुपये लेकर आया था जबकि उसने अपने साले गुरजंट सिंह से भी 2.60 लाख रुपये लिए थे।
बाद में वह और रुपये मांग रहा था। पुलिस अब इस एंगल पर भी जांच करेगी कि आखिरकार वह रुपया सुखविंद्र ने किसे दिया। इसके लिए सुखविंद्र का खाता भी खंगाला जाएगा, क्योंकि सुखविंद्र ने सुसाइट नोट में इस घटना को अंजाम देने की वजह दो लोगों द्वारा 10 लाख की जबरन मांग ही बताई है।
इस घटना का करण बना 'आवेगी व्यवहार'
शहर के निकटवर्ती गांव बलाना में घटित हुई इस घटना की वजह सुखविंद्र का 'आवेगी व्यवहार' था, जोकि अमूमन किसी बात को लेकर ज्यादा तनावग्रस्त लोगों में देखा जाता है। वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. कुलदीप सिंह ने बताया कि परिवार के पांच लोगों को मारकर खुद फंदे पर लटक जाना यह सुखविंद्र में काफी समय से पनप रहे आवेगी व्यवहार का नतीजा है। जिसे 'इम्पेलसिव बिहेविअर' कहा जाता है।
डा. कुलदीप के अनुसार दिमाग में ऐसे विचार एक या दो दिन में नहीं बल्कि कई हफ्तों या महीनों की उपज होते हैं। व्यक्ति के दिमाग में किसी बात को लेकर कई उतार-चढ़ाव शुरू हो जाते हैं। वह उसका हल ढूंढ़ने की कोशिश करता है मगर उसे कोई हल नहीं मिल पाता। उसे हल ढूंढ़ने में कोई मार्गदर्शन व सहारा भी नहीं मिलता। ऐसी स्थिति में उसका व्यवहार नकारात्मकता की ओर बढ़ने लगता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को आवेगी व्यवहार की ओर ले जाती है, जिसका अंजाम बहुत खतरनाक ही होता है। व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति पर नकारात्मक भाव हावी होने लगते हैं। उसे ऐसा लगता है कि सब तरफ से निराशा है, अब कुछ नहीं हो सकता, सब कुछ खत्म हो गया, उसकी दुनिया उजड़ गई है।
उसकी दिनचर्या में भी नकारात्मकता झलकने लगती है। अंतत: वह व्यक्ति खुद की व ज्यादा ग्रस्त होने पर अपनों की जिंदगी भी खत्म करने की सोच सकता है। डॉ. कुलदीप के अनुसार सुखविंद्र सिंह के मामले में भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है। उनके अनुसार इस स्थिति में व्यक्ति के साथ रहने वाले लोगों व परिजनों को उसके बदलते व्यवहार पर नजर रखते हुए उससे उसकी पीड़ा साझा करनी चाहिए। विचारों में ज्यादा नकारात्मक भाव दिखे तो व्यक्ति को अच्छे मनोचिकित्सक व मनोविशेषज्ञ के पास लेकर जाना चाहिए।