Raksha Bandhan not celebrate: यहां 800 साल से लोग राखी नहीं मनाते, रहती है भाइयों की कलाई सूनी

 
Raksha Bandhan not celebrate: यहां 800 साल से लोग राखी नहीं मनाते, रहती है भाइयों की कलाई सूनी
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आज सावन पूर्णिमा है और पूरे देश में लोग इस दिन को उत्साह के साथ अलग-अलग रूपों में त्योहार मनाते हैं। लेकिन इस दिन को सबसे अधिक राखी के त्योहार के रूप में जाना जाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाई में राखी बांधती हैं और भाई स्नेह पूर्वक बहनों को उपहार देते हैं। लेकिन कई ऐसे गांव हैं जहां राखी के नाम से भी लोगों को नफरत है। यहां लोग राखी को एक ऐसा बंधन मानते हैं जिसने उनका सबकुछ लूट लिया। कड़वी यादों की वजह से लोगों ने कई पीढ़ियों से यहां राखी का त्योहार मनाना बंद कर दिया है।

उस काले दिन को याद करके लोग यहां राखी नहीं मनाते

राजस्थान के पाली गांव में पालीवाल लोग रहते हैं। इस गांव के लोग अब देश के अलग-अलग भागों में भी जाकर बसे हैं। लेकिन इस गांव के लोगों के साथ राखी की ऐसी कड़वी याद जुड़ी है जिसकी वजह से यहां लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। इनके लिए राखी काला दिवस है। इसकी वजह यह है कि इनके गांव पर 1230 ई. के आसपास राखी के दिन ही मोहम्मद गोरी का आक्रमण हुआ था। इस आक्रमण में गांव में बड़ी संख्या में लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस घटना के बाद से ही लोगों ने राखी मनाना बंद कर दिया और करीब 800 साल से यहां के लोग अब राखी नहीं मनाते हैं।

राखी पर मिला धोखा, भाइयों ने राखी बंधवाना किया बंद

उत्तर प्रदेश का संभल जिला जिसके बारे में पुराणों में बताया गया है कि यहां भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। इसी जिले के एक गांव बेनीपुर चक के साथ इतिहास की एक ऐसी कड़ी याद जुड़ी हुई है जिसकी वजह से यहां के लोग राखी बंधवाने से डरते हैं। यादवों के इस गांव में लोग राखी को एक ऐसा बंधन मानते हैं जिनके कारण मनुष्य को दर-बदर होना पड़ता है। गांव के लोगों का ऐसा सोचना एक तरह से जायज भी है क्योंकि कभी इस गांव के लोग राखी को बड़े ही उत्साह से मनाते थे लेकिन एक बहन ने ऐसा धोखा दिया जिससे अब ये राखी के बारे में सोचना तक पसंद नहीं करते हैं।

दरअसल इस गांव के लोग पहले कहीं और रहते थे, और इनकी ठाकुरों से बड़ी अच्छी दोस्ती थी। लेकिन ठाकुर इस दोस्ती के पीछे एक चाल रहे थे। इनकी मंशा यादवों के गांव की जमांदारी पाने की थी। एक बार जब राखी के अवसर पर ठाकुरों की बेटियां यादवों को राखी बांधने आईं तो पहले एक वचन मांग लिया कि वह जो मांगेंगी उन्हें यादव भाई देंगे। यादव भाइयों ने सोचा बहन मांगेगी तो क्या मांगेगी, हंसी-हंसी में उन्होंने वचन दे दिया। लेकिन जब बहनों ने गांव की जमींदारी मांग ली तो यादव भाईयों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। वचन के पक्के इन भाईयों ने गांव की जमींदारी तो दे दी लेकिन गांव का त्याग कर दिया और फिर कभी राखी ना बंधवाने की कसम खाई।

इनके लिए उदासी का दिन है राखी

उत्तर प्रदेश के मुरादनगर का एक गांव है सुठारी। इस गांव के साथ अतीत की कड़वी यादें जुड़ी हुई हैं, इसी को याद करके सदियों से लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। गांव के लोग अपने को पृथ्वीराज चौहान का वंशज मानते हैं। ऐसी कथा है कि मोहम्मद गोरी को पता चला कि इस गांव में पृथ्वीराज के वंशज रहते हैं। गोरी ने अपनी सेना के साथ गांव पर आक्रमण कर दिया और लोगों को हाथी के पैरों तले कुचलवाला दिया।

संयोग से इस समय सोहरण सिंह की पत्नी राजवती जो उन दिनों गर्भवती थीं अपने मायके गई थी। जब लौटकर आई तो उन्हें सब हाल पता चला। राजवती ने दो बेटों को जन्म दिया जो लाखी और चुपड़ा के नाम से जाना गया। इन्होंने फिर से इस गांव को बसाया। लेकिन राखी के दिन हुई इस घटना को आज भी लोग याद करके उदास होते हैं और त्योहार नहीं मनाते हैं।

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का जगतपुरवा

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले भीखमपुर जगतपुरवा गांव में रक्षाबंधन का त्योहार मनाना तो बहुत दूर की बात है यहां इस पर्व का जिक्र करना तक पसंद नहीं करते। दरअसल इस गांव में करीब 65 साल पहले एक युवक की राखी के दिन मौत हो गई थी। उसके बाद से लोगों ने राखी मनाना बंद कर दिया था। बाद में युवाओं के उत्साह से इस त्योहार को शुरू किया गया लेकिन फिर राखी मनाने पर अनहोनी हो गई। लोगों के मन में तब से यह बात बैठ गई है कि राखी मनाने से अपशगुन होगा इशलिए लोगों ने राखी मनना ही बंद कर दिया।

उस कड़वी याद के कारण लोग नहीं मनाते राखी

उत्तर प्रदेश के ही एक गांव धौलाना के साठा क्षेत्र में लोग राखी का त्योहार नहीं मनाते हैं। इसकी वजह भी दुखद है। इस गांव के लोग खुद को महाराणा प्रताप से वंशज मानते हैं। राखी के दिन महाराण प्रताप को हार का सामना करना पड़ा था और बड़ी संख्या में लोग युद्ध में मारे गए थे। इसलिए यहां राखी को लोग मातम दिवस के रूप में मानते हैं।