Karnataka Belgavi News:  बैल हो तो ऐसा: रातोंरात किसान को कर दिया मालामाल, खरीदार ने लगा दिया लाखों में दाम

आपने बैलों की रेस के बारे में जरुर सुना होगा। कर्नाटक में बैलों की रेस का चलन बहुत पुराना है। इस रेस के लिए लोग अच्छी नस्ल के बैलों की तलाश में रहते हैं। इसी तरह बैल के मालिक किसान के पास एक खरीदार पहुंचा तो वह मालामाल हो गया।
 

आपने बैलों की रेस के बारे में जरुर सुना होगा। कर्नाटक में बैलों की रेस का चलन बहुत पुराना है। इस रेस के लिए लोग अच्छी नस्ल के बैलों की तलाश में रहते हैं। इसी तरह बैल के मालिक किसान के पास एक खरीदार पहुंचा तो वह मालामाल हो गया। किसान की किस्मत चमक गई। आइए जानते हैं इस गजब किस्से के बारे में।

मिला था 20 लाख रुपये का इनाम
यह मामला कर्नाटक के बेलगावी का है। जिस बैल की बात हो रही वह उत्तरी कर्नाटक में होने वाली बैलों की रेस जीत चुका है। इस रेस को जीतने के बाद उसे 20 लाख रुपये कैश से पुरस्कृत किया गया था। इस बैल को खरीदने के लिए बेलगावी के किसान सदाशिव डांगे ने पूरा जोर लगा दिया।


अच्छी खासी रकम ऑफर की

सदाशिव डांगे बैल के मालिक रामागौड़ा पाटिल के पास पहुंचे और बैल को खरीदने की इच्छा जाहिर की। पाटिल का बैल को बेचने का कोई इरादा नहीं था। सदाशिव भी इस इरादे से गए थे कि वे लौटेंगे तो बैल के साथ ही। सदाशिव ने पाटिल को अच्छी खासी रकम ऑफर की।


18 लाख रुपये में बैल की डील फाइनल

पाटिल ने 18 लाख रुपये में बैल की डील फाइनल की। बता दें कि इस वक्त एक अच्छी नस्ल के बैल की कीमत 80,000 रुपये से 1।3 लाख रुपये के बीच है। रामागौड़ा पाटिल का अपने 5.6 फीट लंबे बैल को बेचने का कोई इरादा नहीं था। लेकिन सदाशिव डांगे ने उन्हें इतनी कीमत ऑफर कर दी कि वे बैल बेचने से इंकार नहीं कर सके।

कर्नाटक में बैल रेस

कर्नाटक में बैल रेस एक लोकप्रिय पारंपरिक खेल है। जिसे "कंबाला" और "करावल" के नाम से भी जाना जाता है। यह दक्षिण कनारा और उडुपी जिलों में आयोजित किया जाता है। कंबाला की शुरुआत 2000 साल से भी पहले की मानी जाती है।

यह माना जाता है कि इसकी शुरुआत धान के खेतों को समतल करने के लिए बैलों का उपयोग करने से हुई थी। समय के साथ, यह एक प्रतिस्पर्धी खेल में बदल गया, जिसमें बैलों की स्पीड और ताकत का टेस्ट किया जाता था।

कैसे खेला जाता है कंबाला और करावल

कंबाला में दो बैलों की जोड़ी को एक लकड़ी के हल से जुड़े भारी स्लेज को खींचते हुए 1।4 किलोमीटर (0।9 मील) की कीचड़ भरी पट्टी पर दौड़ाया जाता है। बैलों पर मालिक या किसान सवार होते हैं जिन्हें जोकी कहा जाता है।

दो तरह के खेल

कंबाला: यह रेसिंग का पारंपरिक रूप है, जिसमें बैलों को केवल कीचड़ भरी पट्टी पर दौड़ाया जाता है। कंबाला आमतौर पर सितंबर से मार्च तक आयोजित किया जाता है, जब धान के खेतों में पानी भरा होता है।

करावल: यह एक नया रूप है, जिसमें रेसिंग ट्रैक में बाधाएं भी शामिल हैं।

कंबाला का क्रेज

कंबाला सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है।  इस दौरान लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। डांस करते हैं और संगीत का आनंद लेते हैं।

विवाद भी गहराया

पशु कल्याण कार्यकर्ताओं ने कंबाला पर जानवरों के प्रति क्रूरता का आरोप लगाया है। इस खेल में बैलों को अक्सर चोट लग जाती है और कभी-कभी उनकी मृत्यु भी हो जाती है। 2014 में, सुप्रीम कोर्ट ने कंबाला पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन 2016 में कुछ शर्तों के साथ इसे फिर से शुरू करने की अनुमति दी गई थी।