‘पढ़ोगे नहीं तो बेचोगे वड़ा-पाव’, ताना सुनकर खोली वड़ा-पाव की दुकान, आज करोड़ों में है कमाई
Goli Vada Pav Success Story
गोली वड़ा पाव का नाम शायद आपने नाम सुना हो या फिर अपने शहर में इसके आउटलेट पर गए हों। छोटे से दिखने वाले इस आउटलेट्स का सालाना टर्न ओवर 50 करोड़ रुपए हैं।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस आउटलेट की कामयाबी पर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल, आईएमडी स्विट्जरलैंड और आईएसबी हैदराबाद जैसे संस्थानों ने केस स्टडी की है।
यहां से हुई शुरूआत-
कंपनी के संस्थापक वेंकटेश अय्यर ने साल 2004 में ‘बॉम्बे बर्गर’ कहे जाने वाले वड़ा पाव बनाने के लिए एक कंपनी की शुरुआत की थी।
आज इस कंपनी के देशभर में 350 आउटलेट्स हैं।
बचपन में मिले थे वड़ा पाव बेचने के ताने-
अपने एक इंटरव्यू में वेंकटेश ने बताया कि जो बच्चे पढ़ाई में अच्छे नहीं होते अक्सर उन्हें ताने सुनने को मिलते हैं। उन्हें कहा जाता है कि यदि अच्छे से नहीं पढ़ोगे तो वड़ा पाव बेचोगे।
ऐसा ही कुछ वेंकेटेश के साथ भी हुआ था। उनका परिवार चाहता था कि वे अच्छी तरह से पढ़ाई करें और इंजीनियर, डॉक्टर या चार्टर्ड एकाउंटेंट बनें। लेकिन परिवार वालों ने कभी नहीं सोचा था कि वह सच में वड़ा पाव बेचेंगे और इतने कामयाब होंगे।
नौकरी के दौरान आया आइडिया-
खुद का बिजनेस शुरू करने से पहले वेंकटेश ने करीब 15 साल फाइनेंस सेक्टर में काम किया था। वे बताते हैं कि वर्षों से उनका ध्यान रिटेल सेक्टर को मजबूत करने में था।
वे चाहते थे कि जरूरतमंद लोगों के लिए अधिक से अधिक नौकरियों के अवसर पैदा हो सकें। इसी बात का ध्यान में रखते हुए फरवरी 2004 में गोली वड़ा पाव का पहला स्टोर ठाणे जिले के कल्याण में शुरू किया।
हर आयोजन का हिस्सा है वड़ा पाव-
वेंकटेश कहते हैं कि हम सभी अपने घरों में इडली, डोसा और पोंगल खाते हैं। लेकिन मुंबई में उनके लिए वड़ा पाव फिल्मों में एक ‘आइटम नंबर’ के जैसा था। कॉलेज पार्टियों से लेकर क्रिकेट मैच तक, वड़ा पाव सभी आयोजनों का एक हिस्सा रहा है।
यही कारण है कि उन्होंने बिजनेस के लिए इसका चयन किया। पनीर वड़ा पाव, शेज़वान, मिक्स वेज, पालक मकई, पनीर और यहाँ तक कि आलू टिक्का जैसे वड़ा पाव भी इस फ्रैंचाइज़ी में लोकप्रिय हैं।
ऐसे रखा गोली नाम-
स्ट्रीट फूड की यदि बात करें तो आलू की पैटी, जिसे पहले बेसन में डुबो कर तला जाता है, इसे ‘गोली’ कहा जाता है. वेंकटेश कहते हैं कि जब उन्होंने वड़ा पाव की दुकान शुरू करने के बारे में लोगों से बातचीत शुरू की तो मुम्बईया लहजे में अक्सर पूछा जाता था कि ‘क्या गोल दे रहा है?’
यह बात जेहन में बस गई और जब कंपनी के नाम के बारे में सोच रहा था तो ‘गोली’ शब्द का उपयोग करने का फैसला किया।