Gurudwara Pathar Sahib: गुरुद्वारा पत्थर साहिब की कहानी जानकर चौंक जाएंगे आप, कैसे गुरु नानक देव से टकराकर कैसे मोम बन गया था पत्थर

गुरुद्वारा पत्थर साहिब एक प्रतिष्ठित स्थान है, जहां सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने एक राक्षस पर विजय प्राप्त की थी.
 

आज हर जगह गुरु नानक देव जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। आपको बता दे गुरु नानक देव सिख समुदाय के प्रथम गुरु थे। गुरु नानक देव से जुड़ी एक यादगार और ऐतिहासिक टूरिस्ट प्लेस है गुरुद्वारा पत्थर साहिब. यह लेह से करीब 25 किलोमीटर दूर श्रीनगर-लेह रोड पर स्थित है. लेह का यह एक आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट है. इस स्थान से एक बेहद ही दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है. यदि आप भी लद्दाख जाने की योजना बनाएं तो गुरुद्वारा पत्थर साहिब जरूर होकर आएं.

जानें इससे जुड़ी कुछ खास और महत्वपूर्ण बातें

गुरुद्वारा पत्थर साहिब एक प्रतिष्ठित स्थान है, जहां सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने एक राक्षस पर विजय प्राप्त की थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गुरु नानक जी बैठकर ध्यान कर रहे थे, तभी एक दानव ने उनकी प्रार्थना में बाधा डालने के लिए एक बड़ा सा चट्टान उनके ऊपर फेंक दिया, लेकिन वह पत्थर गुरु नानक के शरीर को छूते ही नर्म मोम में बदल गया.

हालांकि, गुरु नानक जी के शरीर का पिछला भाग पत्थर में धंस गया. आज भी पत्थर पर गुरु नानक जी के शरीर का निशान मौजूद है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गुरु नानक जी बैठकर ध्यान कर रहे थे, तभी एक दानव ने उनकी प्रार्थना में बाधा डालने के लिए एक बड़ा सा चट्टान उनके ऊपर फेंक दिया, लेकिन वह पत्थर गुरु नानक के शरीर को छूते ही नर्म मोम में बदल गया. हालांकि, गुरु नानक जी के शरीर का पिछला भाग पत्थर में धंस गया. आज भी पत्थर पर गुरु नानक जी के शरीर का निशान मौजूद है। 

दानव पहाड़ से नीचे देखने आया तो गुरु नानक जी को जीवत पाकर दंग रह गया. वह गुस्से में आकर अपने दाएं पैर को पत्थर में मारा, जिससे उसका भी पैर पत्थर में धंस गया. उसके बाद उसने अपने कर्मों के लिए गुरु नानक देव से क्षमा मांगी और तपस्या भी की. इसके बाद गुरु नानक जी ने उसे माफ कर दिया. राक्षस के पैर के निशान वाला पत्थर आप लेह में देख सकते हैं.

आज भी गुरु नानक देव के शरीर की छाप और दानव के पदचिह्न के साथ शिलाखंड गुरुद्वारा पत्थर साहिब में प्रदर्शित है. यह क्षेत्र बौद्ध धर्म के लिए प्रमुख रूप से जाना जाता है और बहुत मशहूर है. गुरुद्वारा पत्थर साहिब की पूजा इस स्थान पर आने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा समान रूप से की जाती है. इसकी देखरेख भारतीय सेना करती है.

ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार, गुरु नानक देव नेपाल, सिक्किम और तिब्बत होते हुए लद्दाख पहुंचे थे. लेह में स्थित पत्थर साहिब गुरुद्वारे का इतिहास बेहद महत्वपूर्ण है. बताया जाता है कि गुरु नानक जी लेह 1517 ई. में सुमेर पर्वत पर उपदेश देने के बाद पहुंचे थे.

यदि आप इस जगह जाना चाहते हैं तो जून से अक्टूबर महीने के बीच जा सकते हैं. भारी बर्फबारी के कारण यह जगह नवंबर से मई के बीच बंद रहता है. आप यहां फ्लाइट, सड़क मार्ग से श्रीनगर-लेह तक जा सकते हैं. पत्थर साहिब गुरुद्वारा श्रीनगर-लेह रूट पर स्थित है. यहां सर्दियों में जाना चाहते हैं तो आपको -20 डिग्री सेल्सियस तापमान मिलेगा. पाथर साहिब गुरुद्वारा सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 6:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक खुला रहता है.