World's First Artificial Womb Facility: भविष्य में महिलाओं की होगी गर्भधारण से छुट्टी, इस चीज़ के ज़रिये बच्चे होंगे पैदा, विकसित होते भी देख सकेंगे अपना बच्चा, देखे वीडियो 

आप अपने बच्चे को विकसित होते देख सकेंगे। असल में यह दुनिया का पहला कृत्रिम भ्रूण केंद्र (World's First Artificial Womb Facility) जिसमें बच्चे बर्थ पॉड्स (Birth Pods) में विकसित किए जाएंगे। यह दावा किया है
 

World's First Artificial Womb Facility: इंसानों का फ्यूचर यही है। पुरुष रहेंगे नहीं। बच्चे नकली गर्भ से पैदा होंगे। मशीनी गर्भ से। कैसे? आप यहां मौजूद वीडियो और फोटो में देख सकते हैं। सिर्फ बच्चे पैदा ही नहीं होंगे। बल्कि आप उनके अंदर मनमाफिक आदतें डलवा सकते हैं। किस तरह का बच्चा आपको चाहिए, वो बदलाव कर सकते हैं। सिर्फ उसके जीन्स में बदलाव करके। इसमें महिलाओं को गर्भवती होने की जरुरत नहीं पड़ेगी। न ही डिलिवरी के समय होने वाले दर्द को बर्दाश्त करना होगा। 

आप अपने बच्चे को विकसित होते देख सकेंगे। असल में यह दुनिया का पहला कृत्रिम भ्रूण केंद्र (World's First Artificial Womb Facility) जिसमें बच्चे बर्थ पॉड्स (Birth Pods) में विकसित किए जाएंगे। यह दावा किया है कि साइंस कम्यूनिकेटर और वीडियो प्रोड्यूसर हाशेम अल घैली ने। 

हाशेम कहते हैं कि भविष्य में बच्चे पुश बटन तकनीक से पैदा होंगे। गर्भधारण होगा लेकिन किसी महिला के शरीर में नहीं। बल्कि बर्थ पॉड्स में। एक ऐसा भ्रूण जिसे आप देख सकेंगे। उसमें विकसित हो रहे बच्चे को देख सकेंगे। हफ्ता दर हफ्ता, महीना दर महीना। 

इस फैसिलिटी का नाम है एक्टोलाइफ (Ectolife)। यहां पर एक कंप्यूटर मैट्रिक्स बनाया जाएगा। जिसमें इंसानी व्यवहारों की पूरी डिटेल होगी। आपको किस तरह के बच्चे चाहिए, वैसे बच्चे पैदा किए जा सकेंगे। यानी फुटबॉलर बच्चा लाना है तो जेनेटिक्स में वैसा बदलाव करके आप बच्चे पैदा कर सकते हैं। 

आप यह बर्थ पॉड्स अपने घर में भी लगवा सकेंगे। ताकि आप अपनी आंखों के सामने बच्चे को विकिसत होता देख सकें। वैसे भ्रूण केंद्र में 400 बेबी पॉड्स होंगे। सारे के सारे रीन्यूएबल एनर्जी से चलेंगे। आप अपने बच्चे के जरूरी वाइटल्स को एप के जरिए मॉनिटर कर सकेंगे। सुधार सकेंगे। 

हाशेम अल घैली के इन दावे, वीडियो, फोटो के बाद इस कॉन्सेप्ट को लेकर विवाद छिड़ गया है। एक्टोलाइफ को पहले कृत्रिम भ्रूण केंद्र के तौर पर देखा तो जा रहा है। लेकिन इससे गर्भधारण की नैतिक अवधारणा को नुकसान पहुंच रहा है। बच्चों को इस तरह से बर्थ पॉड्स में पैदा करना इंसानियत के खिलाफ है। 

पारदर्शी पॉड्स में रखे बच्चों को देख कर लगता है कि यहां पर बच्चों की खेती हो रही है। जबकि, हाशेम कह रहे हैं कि यह एक कॉन्सेप्ट है। इसे लेकर किसी को परेशान होने की जरुरत नहीं है। हालांकि जिस तरह से आर्टिफिशियल भ्रूण को विकसित करने की तकनीक विकसित हो रही है। इस काम में भी बहुत ज्यादा दिन नहीं लगेंगे। 

इन बर्थ पॉड्स में आर्टिफिशिल अंब्लिकल कॉर्ड होगी। जो ऑक्सीजन और पोषक तत्व बच्चे तक पहुंचाएगी। पॉड्स आर्टिफिशियल अमनियोटिक तरल पदार्थ से भरे होंगे। जिसमें जरुरत के हिसाब से हॉर्मोन्स डाले गए होंगे। जेनेटिक बदलाव किया गया होगा। इन पॉड्स को बायो रिएक्टर से चलाया जाएगा। 

इन पॉड्स में हर दिन हर हफ्ते के हिसाब से और विकास के हिसाब से पोषक तत्व डाले जाएंगे। ऐसे जेनेटिक बदलाव किए जा सकेंगे कि आपको अपना मनमाफिक बच्चा मिले। उसे जो बनाना चाहते हैं, वैसा बच्चा पैदा होगा। बच्चों में ऐसे बदलाव किए जाएंगे ताकि उसके पैरेंट्स उससे अपनापन महसूस कर सकें।  

हाशेम कहते हैं कि एक्टोलाइफ एक साइंस फिक्शन है। जिसे लेकर किसी को परेशान होने की जरुरत नहीं है। इंसान को ऐसी तकनीक विकसित करने में कई साल लग जाएंगे। लेकिन ज्यादा नहीं। यह आसान प्रक्रिया नहीं है। मैंने इसे सिर्फ इसलिए बनाया है ताकि लोग ऐसी तकनीकों पर चर्चा कर सकें। 

हाशेम कहते हैं कि गर्भधारण करना कोई मजाक की बात नहीं है। यह दर्द से भरी होती है। बेचैनी लाती है। महिलाओं की हालत खराब कर देती है। थकानपूर्ण होती है। कई देशों में तो गर्भधारण करना खतरे से खाली नहीं है। क्योंकि वहां पर सुविधाएं नहीं हैं। हम सिर्फ एक आइडिया देना चाहते हैं कि इस तरह से बच्चे पैदा होंगे। 

अगर कोई महिला गर्भवती है। वह स्मोक करती है। ड्रिंक करती है। तनाव लेती है। या उसे कोई बीमारी है। तो गर्भ में पल रहे उसके बच्चे को भी दिक्कतें होंगी। इन बर्थ पॉड्स में हम सेहतमंद बच्चा पैदा कर सकते हैं। वहीं, महिला अपनी लाइफस्टाइल फॉलो करते हुए मां बन सकेगी। इसमें किसी को किसी तरह के विवाद में नहीं पड़ना चाहिए। 

हाशेम कहते हैं कि इंसानी बच्चे एनिमल किंगडम में दुनिया के सबसे लाचार और अल्पविकसित जीव होते हैं। क्यों न हम अपने बच्चों को ऐसी ताकतें दें जो उन्हें अल्पविकसित से अधिक विकसित बना दे। इनके बायोलॉजिकल सीमाओं को बढ़ाया जा सकता है। उन्हें बीमारी रहित बनाया जा सकता है।