Success Story: पिता रिक्शा चलाते, बेटो मोमबत्ती-लालटेन जलाकर पढ़ता था, आज बन गया आईएएस अधिकारी

 

पिता रिक्शा चलाते थे, घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, आठवीं कक्षा से खर्चे के लिए ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया बावजूद इसके हार नहीं मानी। जी हां बात कर रहे हैं आईएएस गोविंद जाययवाल की जिनकी सफलता की कहानी हजारों तैयारी करने वालों के लिए मिसाल है।

बड़ी मुश्किल से होता था दो वक्त की रोटी का गुजारा


हम बात कर रहें हैं आईएएस ऑफिसर गोविंद जयसवाल (IAS Officer Govind Jaiswal) की. इनके पिता एक रिक्शा चालक थे. बनारस की तंग गलियों में 12 x 8 के किराये के मकान में रहने वाला गोविंद का परिवार दो वक्त की रोटी का भी बड़ी मुश्किल से गुजारा कर पाता था. बता दें कि गोविंद के घर में उनके माता-पिता के अलावा उनकी दो बहनें भी हैं.

ऊपर से उनका घर ऐसी जगह पर था, जहां शोर-गुल की कोई कमी नहीं थी. उनके घर के आस-पास मौजूद फक्ट्रियों और जनरेटरों के शोर में एक दूसरे से बात करना भी काफी मुश्किल होता था. यहां तक कि नहाने-धोने से लेकर खाने-पीने तक का सारा काम इसी छोटी से घर में करना पड़ता था. हालांकि, ऐसी परिस्थिति में रहने के बाद भी गोविंद नें शुरू से पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया था.

कक्षा 8वीं में ही पढ़ाने लगे ट्यूशन


घर की आर्थिक स्थिति के खराब होने के कारण गोविंद ने अपनी पढाई और किताबों का खर्च निकालने के लिए कक्षा 8वीं में ही अपने से छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था. पिता के रिक्शा चालक होने और घर की आर्थिक के खराब होने के कारण लोग कई बार गोविंद को यह ताना भी देते थे कि "चाहे तुम जितना भी पढ़ लो चलाना तो तुम्हें रिक्शा ही है."

अक्सर मोमबत्ती या डिबिया जलाकर करते थे पढ़ाई


गोविंद कई बार घर के आस-पास के शोर से इतना परेशान हो जाते थे कि वे अपने कानों में रूई लगा कर पढ़ाई किया करते थे. जब उन्हें ज्यादा परेशानी होती थी तो वे मैथ्स के सवालों को हल करने में लग जाते थे. वहीं, रात के समय जब शांति होती थी तब वे बाकी सब्जेक्ट्स की पढ़ाई किया करते थे. इसके अलावा उनके यहां 12 से 15 घंटे के करीब बिजली की कटौती रहती थी, जिस कारण उन्हें अक्सर मोमबत्ती या डिबिया जलाकर पढ़ाई करनी पड़ती थी.

मात्र इतने रुपए के कारण छोड़नी पड़ी इंजीनियरिंग


गोविंद अपने स्कूल के टॉपर रह चुके थे, जिस कारण लोगों ने उन्हें कक्षा 12वीं के बाद इंजीनियरिंग करने की सलाह दी थी. हालांकि, वो भी कुछ ऐसा ही चाहते थे, लेकिन जब उन्हें पता चला की एप्लिकेशन फॉर्म भरने की फीस 500 रुपए है, तो उन्होंने इंजीनियरिंग करने का आइडिया ड्रोप कर दिया और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में एडमिशन ले लिया, जहां उन्हें मात्र 10 रुपए की औपचारिक फीस भरनी होती थी.

घर की जमीन बेचकर की UPSC की तैयारी


परीक्षा की फाइनल और अच्छी तैयारी के लिए गोविंद जैसे-तैसे करके दिल्ली आ गए. हालांकि, उसी दौरान उनके पिता के पैर में एक गहरा घाव हो गया और वे पूरी तरह से बेरोजगार हो गए. ऐसे में परिवार ने अपनी एक मात्र सम्पत्ती, एक छोटी सी जमीन को मात्र 30,000 रुपए में बेच दिया ताकि उनका बेटा अपनी यूपीएससी की कोचिंग पूरी कर सके. गोविंद अपने परिवार द्वारा दिए गए इस बलिदान को समझते थे, इसलिए उन्होंने अपने परिवार को निराश भी नहीं किया और मात्र 24 साल की उम्र में साल 2006 में अपने पहले ही अटेंप्ट में 48वां रैंक हासिल कर आईएएस ऑफिसर बन गए.