हरियाणा में पराली जलाने से हवा हुई जहरीली, AQI पहुंचा 400 पार

 
हरियाणा में बढ़े प्रदूषण की वजह से इमरजेंसी जैसे हालात बने हुए है। प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं जहां AQI 300 के पार पहुंच गया है। दीवाली से पहले ही प्रदेश में हवा जहरीली बनी हुई है। 

कुरूक्षेत्र में कल 15 जगहों पर पराली जलाई गई। इसके अलावा इन शहरों में कई जगहों पर खुले में कूड़ा भी जलाया जा रहा है। एक दिन पहले 23 अक्टूबर को पानीपत में एक्यूआई 500 से ऊपर पहुंच गया था। आज पानीपत में एक्यूआई 450, कुरूक्षेत्र में 420 और करनाल में 402 चल रहा है।

हालांकि पानीपत में हवा चलने से प्रदूषण से राहत मिली है। रात को AQI का लेवल 450 के बाद अब इसमें कमी आई है। पानीपत के डीसी वीरेंद्र कुमार दहिया का कहना है कि प्रदूषण का स्तर 158 है, जो पहले से सुधरा है।


मेदांता हॉस्पिटल के डॉ. अरविंद कुमार का कहना है कि 400 ​​से ऊपर एक्यूआई वाली हवा में सांस लेना एक दिन में 25-30 सिगरेट पीने के बराबर है। 300-350 का AQI एक दिन में 15-20 सिगरेट के बराबर हो सकता है। इससे स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

पंजाब के 2 शहरों और चंडीगढ़ में प्रदूषण का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया है। पंजाब में अमृतसर का AQI 221 और मंडी गोबिंदगढ़ में 235 AQI हो चुका है। जो खराब की कैटेगरी में आता हैं। चंडीगढ़ में भी AQI 210 हो चुका है। यहां पराली जलने की घटनाएं कम हुई हैं लेकिन हवा न चलने से इसका धुआं नहीं छंट रहा।

WHO के मुताबिक वायु प्रदूषण से इन बीमारियों का खतरा

1. अस्थमा: सांस लेने में कठिनाई होती है, छाती में दबाव महसूस होता है और खांसी भी आती है। ऐसा तब होता है जब व्यक्ति की श्वसन नली में रुकावट आने लगती है। यह रुकावट एलर्जी (हवा या प्रदूषण) और कफ से आती है। कई रोगियों में यह भी देखा गया है कि सांस लेने की नली में सूजन भी आ जाती है।

2. फेफड़ों का कैंसर: स्मॉल सेल लंग कैंसर (SCLC) प्रदूषण और धूम्रपान से होने वाला कैंसर है। इसका पता तब चलता है जब SCLC शरीर के अलग-अलग हिस्सों में फैल चुका होता है। साथ ही, नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर (NSCLC) तीन तरह के होते हैं। एडेनोकार्सिनोमा, स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा और लार्ज सेल कार्सिनोमा।

3. हार्ट अटैक : वायु प्रदूषण से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। जहरीली हवा के PM 2.5 के बारीक कण खून में चले जाते हैं। इससे धमनियां सूज जाती हैं।

4. बच्चों में सांस की दिक्कत: बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होती है। यह नाक, गले और फेफड़ों को संक्रमित करता है, जो सांस लेने में मदद करने वाले अंग हैं। बच्चों को इस बीमारी का खतरा अधिक होता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चे इस बीमारी से सबसे ज्यादा मरते हैं।

5. क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) : क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक सांस संबंधी बीमारी है जिसमें मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है। यह बहुत खतरनाक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सबसे ज्यादा लोग सीओपीडी से मरते हैं।