कपास उत्पादक किसान मित्र और शत्रु कीटों को पहचानें, ऐसे करें उनका उपचार, जानिये पूरी विधि

हिसार। कपास की फसल को सफेद सोना भी माना जाता है। कपास की उतरी भारत में एक महत्वपूर्ण औधोगिक एवं व्यावसायिक फसलों में गिनती होती है। कपास हरियाणा की प्रमुख खरीफ फसल है। कपास की खेती मुख्यत हरियाणा के 10 जिलों में की जाती है लेकिन कुल क्षेत्रफल का लगभग...
 

हिसार। कपास की फसल को सफेद सोना भी माना जाता है। कपास की उतरी भारत में एक महत्वपूर्ण औधोगिक एवं व्यावसायिक फसलों में गिनती होती है। कपास हरियाणा की प्रमुख खरीफ फसल है।

कपास की खेती मुख्यत हरियाणा के 10 जिलों में की जाती है लेकिन कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 फीसदी 5 जिलों (भिवानी, जींद, सिरसा, फतेहाबाद, हिसार) में आता है। देखा जाए तो लगभग 95 फीसदी एरिया बीटी कपास के अधीन है।

कपास की लंबी अवधि लगभग 180-190 दिन होने की वजह से विभिन्न प्रकार के कीटों द्वारा इसमें नुकसान पहुंचता है। गन्नौर से कृषि अधिकारी संदीप बजाज ने बताया कि कपास की बिजाई के समय वातावरण गर्म और फूल फलन के वक्त करीब दिन का तापमान 30-35 डिग्री सेल्सियस व रात में ठंड की जरूरत होती है।

हरियाणा में कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला, गुलाबी सुंडी मुख्य रस चूसने वाले कीड़े है लेकिन कपास की फसल के लिए सबसे हानिकारक सफेद मक्खी कीट है।

आर्थिक कगार आधार
किसान आर्थिक कगार आधार को समझें व अपनाएं। इसके लिए जुलाई, अगस्त व सितंबर के महीने में सप्ताह में दो बार कपास की फसल का निरिक्षण करें।

सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर पहले दो स्प्रे नीमबिसिडिन 300 पीपीएम एक लीटर दवाई को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके बाद भी एक पत्ते पर 6-8 सफेद मक्खी नजर आ रही है तो फलोनिकामिड 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

ऐसे करें कीटों की पहचान व रोकथाम
सफेद मक्खी: यह सफेद रंग का छोटे आकार का कीट होता है। यह ज्यादातर पतों की निचली सतह पर रहकर रस चूसता है जिससे पतियों में पोषक तत्वों की कमी आ जाती है। अगस्त- सितम्बर के महीने में जैसे ही वातावरण में नमी की अधिकता हो जाती है, इनकी संख्या में भी वृद्धि हो जाती है।

रोकथाम: 300 मिलीलीटर डाईमेथोयट 30 ई. सी. या 300 मिलीलीटर 25 ई. सी. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

गुलाबी सुंडी: गुलाबी रंग का यह कीट जुलाई से लेकर अक्टूबर महीने तक कलियां, फूल व टिंडों पर अटैक करता है। टिंडे लगने पर यह उसके अंदर घुसकर अंदर बन रहें कच्चे बीतों और कपास को काटकर खाता है।

रोकथाम: 500-600 मिलीलीटर मोनोक्रोटोफॉस 36 एस एल प्रति एकड़ की दर से 175 से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

पोषक तत्व व छिड़काव का महत्व
कपास की फसल की बिजाई वर्षा ऋतु से पहले की जाती है। अगस्त महीने में पोषक तत्वों में कमी की वजह से पैदावार घटने के आसार हों जातें हैं। फसल में जिंक व नाइट्रोजन की कमी नजर आए तो 2.5 किलोग्राम यूरिया व आधा किलो जिंक सल्फेट दोनों को 200 लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करें।