पलवल में मनाया गया वीरांगना झलकारी बाई जयंती समारोह, सीएममनोहर लाल ने मुख्य अतिथि के रूप में की शिरकत 

 
 

महान वीरांगना झलकारी बाई का भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान

रानी लक्ष्मीबाई की जान बचाने के साथ ही बहादुरी के साथ अंग्रेजों से लिया था लोहा

चंडीगढ़, 19 नवंबर-  हरियाणा के सूचना, लोक संपर्क , भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा  संत-महापुरुष सम्मान एवं विचार प्रसार योजना के तहत  महापुरुषों के जीवन परिचय व शिक्षाओं से आमजन को रूबरू करवाने के लिए  चलाई जा रहे कार्यक्रमों की कड़ी में आज पलवल में वीरांगना झलकारी बाई का जयंती समारोह मनाया गया जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। 

उल्लेखनीय है कि वीरांगना झलकारी बाई ने अंग्रेजों से रानी लक्ष्मीबाई की जान बचाने में अहम अपनी जान की कुर्बानी दी थी। झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश) के गांव भोजला में एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता सदोवा उर्फ मूलचंद कोली एक सैनिक थे। पिता के सैन्य जीवन से प्रभावित झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ - प्रतिज्ञ बालिका थी।

भारत में जब भी महिला सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है। लक्ष्मीबाई की तरह ही उनकी महिला शाखा 'दुर्गा दल' की सेनापति झलकारी बाई भी ऐसी ही एक महान वीरांगना थीं जिनका भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने न केवल रानी लक्ष्मीबाई की जान बचाई बल्कि अपने प्राणों की परवाह न करते हुए अदम्य साहस व बहादुरी के साथ अंग्रेजों से लोहा लिया। झलकारी हूबहू रानी लक्ष्मीबाई की तरह थीं। जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी को अपने हाथों से सजाया और दरबार में लेकर आईं तो मौजूद लोग पहचान नहीं पाए कि लक्ष्मीबाई कौन हैं और झलकारी कौन है। तब रानी ने झलकारी को बाई की उपाधि दी और वे तब से झलकारी बाई हुई।

झलकारी बाई की छवि साहसी, निडर व देशभक्त वीरांगना की है। देश के अनेक राज्यों में उनकी कहानी बड़े गर्व के साथ सुनाई जाती है। झलकारी बाई की महानता को बुंदेलखंड में रानी लक्ष्मीबाई के बराबर सम्मान दिया जाता है। दलित के तौर पर उनकी महानता और हिम्मत ने उत्तर भारत में दलित समाज के जीवन पर काफी सकारात्मक प्रभाव डाला। अजमेर, राजस्थान में उनकी प्रतिमा और स्मारक भी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी एक प्रतिमा आगरा में भी स्थापित की है। उनके नाम से लखनऊ में एक धर्मार्थ चिकित्सालय भी है।

अंग्रेजों के साथ बहादुरी के साथ लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई की जान बचाने वाली झलकारी बाई की समाधि ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में स्थित है। झलकारी बाई के अलावा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की समाधि भी ग्वालियर में ही बनाई गई है। वीरांगना झलकारी बाई की समाधि पर आज भी लाखों लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने भी झलकारी बाई की याद में झांसी किले के अंदर एक संग्रहालय की स्थापना की जहां प्रतिवर्ष लाखों लोग पहुंचकर झलकारी बाई के अदम्य साहस व नीडरता से जुड़े तथ्यों से रूबरू होते हैं।