हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान तीसरे दिन सात विधेयक पारित, हिंदी में पढ़ें पूरी जानकारी 

 
 सत्र के दौरान पांच विधेयक पेश भी किए गए

 

चण्डीगढ़, 18 नवम्बर - हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान तीसरे दिन सात विधेयक चर्चा उपरांत पारित किए गए। इनमें हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 2024, हरियाणा ग्राम शामलात भूमि (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024, हरियाणा नगर पालिका (संशोधन) विधेयक, 2024 तथा हरियाणा नगर निगम(संशोधन) विधेयक,2024, हरियाणा नगरीय क्षेत्र विकास तथा (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024, हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) संशोधन विधेयक, 2024 तथा हरियाणा संविदात्मक कर्मचारी (सेवा की सुनिश्चितता) विधेयक, 2024 शामिल हैं।

इसके अतिक्ति, सत्र के दौरान पांच विधेयक पेश भी किए गए। इनमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (हरियाणा संशोधन) विधेयक, 2024, हरियाणा माल एवं सेवा कर (संशोधन) अधिनियम, 2024, हरियाणा कृषि भूमि पट्टा विधेयक, 2024, हरियाणा विस्तार प्राध्यापक तथा अतिथि प्राध्यापक (सेवा की सुनिश्चितता),विधेयक, 2024 तथा हरियाणा तकनीकी शिक्षा अतिथि संकाय (सेवा की सुनिश्चितता), विधेयक, 2024 शामिल हैं।

 

हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 2024

 

हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 1994 को संशोधित करने के लिए हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया गया।

 

हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुसार पंचायती राज संस्थाओं में पिछड़ा वर्ग (ख) के व्यक्तियों को आनुपातिक आरक्षण देने के उद्देश्य से राज्य सरकार हरियाणा पंचायती राज (संशोधन) विधेयक, 1994 की धारा 9, 59 और 120 में संशोधन करने का प्रस्ताव करती है। यह प्रगतिशील परिवर्तन पिछड़े वर्गों के वंचित व्यक्तियों के सशक्तिकरण और उत्थान में मदद करेगा।

हरियाणा ग्राम शामलात भूमि (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024

 

हरियाणा ग्राम शामलात भूमि (विनियमन) अधिनियम, 1961 में संशोधन करने के लिए हरियाणा ग्राम शामलात भूमि (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024 पारित किया गया।

 

जहां तक शामलात देह में स्थित भूमि हरियाणा भूमि उपयोग अधिनियम, 1949 के तहत खेती के उद्देश्य से पट्टे के आधार पर आवंटित की गई थी। पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद भी, विभिन्न न्यायालयों द्वारा बेदखली के आदेश पारित किए जाने के बावजूद ये पट्टेदार भूमि के अधीन रहे। सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितम्बर,1986 को एक मामले में,  'बोधनी चमन भूतपूर्व सैनिक सहकारी काश्तकार सोसायटी लिमिटेड आदि बनाम हरियाणा राज्य एवं अन्य'  में कहा था कि सरकार भूमि का अधिग्रहण कर सकती है और याचिकाकर्ताओं को भूमि की कीमत चुकाने की शर्त पर आवंटित कर सकती है या याचिकाकर्ताओं की दयनीय स्थिति को देखते हुए उन्हें कहीं और भूमि आवंटित कर सकती है। हालांकि, उस समय सरकार द्वारा आवश्यक पुनर्वास उपाय नहीं किए जा सके। इसलिए, वर्तमान संशोधन के माध्यम से यह प्रस्तावित किया गया है कि शामलात देह में ऐसी भूमि, जो हरियाणा भूमि उपयोग अधिनियम, 1949 के तहत 20 वर्ष की अवधि के लिए पट्टे के आधार पर आवंटित की गई थी और उक्त भूमि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार मूल पट्टेदार, हस्तांतरिती या उसके कानूनी उत्तराधिकारी के निरंतर खेती योग्य कब्जे में रही है, को तुरंत प्रभाव से शामलात देह के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव है। मूल पट्टेदार, हस्तांतरी या उसके कानूनी उत्तराधिकारी को संबंधित ग्राम पंचायत को एक राशि का भुगतान करना होगा, जैसा कि संबंधित कलेक्टर द्वारा अधिभोगी द्वारा किए गए आवेदन पर ऐसे सिद्धांत और तरीके से निर्धारित किया जा सकता है।

हालांकि पंजाब ग्राम शामलात भूमि (विनियमन) नियमावली, 1964 में 200 वर्ग गज तक की शामलात भूमि पर अनाधिकृत रूप से निर्मित घर के नियमितीकरण के लिए एक प्रावधान है, जहां व्यक्तियों ने 200 वर्ग गज से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया है और अपने घरों का निर्माण किया है। यदि पंचायतों को भूमि वापस लौटाने के लिए ऐसे अनधिकृत निर्माणों को ध्वस्त किया जाता है तो इससे न केवल ऐसे व्यक्तियों को कठिनाई होगी, बल्कि इससे महंगी और समय लेने वाली मुकदमेबाजी भी हो सकती है। इसलिए, शामलात देह में ऐसी भूमि को गांव के निवासियों को, जिन्होंने 31 मार्च, 2004 को या उससे पहले अपने घरों का निर्माण किया है, अधिकतम 500 वर्ग गज तक खुली जगह सहित, बाजार दर से कम दर पर बिक्री द्वारा हस्तांतरित करने का प्रस्ताव किया गया है।

 

हरियाणा नगर पालिका (संशोधन) विधेयक, 2024

 

हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1973 को संशोधित करने के लिए हरियाणा नगर पालिका (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया गया।

संशोधन के अनुसार प्रत्येक नगर परिषद/समिति में पिछड़े वर्ग ‘ख’ के लिए सीटें  आरक्षित की जाएंगी तथा इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस नगर परिषद/समिति में सीटों की कुल संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य, निकटतम होंगी, जो उस नगर परिषद/समिति की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़े वर्ग ‘ख’ की जनसंख्या के अनुपात की आधी होगी तथा यदि दशमलव 0.5 या उससे अधिक है तो आगामी उच्चतर पूर्णांक में पूर्णांकित की जाएगी, तथा अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्ग ‘क’ के लिए पहले से ही आरक्षित सीटों को निकालने के बाद, ऐसी सीटें, उन सीटों, जिनमें पिछड़े वर्ग ‘ख’ की जनसंख्या की अधिकतम प्रतिशतता है, से प्राप्त पिछड़े वर्ग ‘ख’ के आरक्षण हेतु प्रस्तावित सीटों की संख्या की अधिकतम तीन गुणा में से ड्रा ऑफ लॉट्स द्वारा आबंटित की जाएगी।

 

 भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 में वर्णित आरक्षण नीति द्वारा पालिकाओं की संरचना निर्देशित होती है, इससे खंड (6) में प्रावधान है कि इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी पालिका में स्थानों के या पालिकाओं में अध्यक्षों के पद के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. के0 कृष्ण मूर्ति व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य (2010) 7 एस.सी.सी. 202 के मामले में 11 मई,2010 के अपने निर्णय में अनुच्छेद 243 (6) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह प्रावधान राज्य विधानमंडलों को पिछड़े वर्गों के पक्ष में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाता है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 की याचिका संख्या 980 शीर्षक विकास किशनराव गवाली बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य में 4 मार्च,2021 को पारित अपने फैसले से राज्य विधान, राज्य भर में, एक स्वतंत्र आयोग द्वारा पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की उचित जांच के बिना स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण की एक समान और कठोर मात्रा प्रदान नहीं कर सकता है। पिछड़े वर्गों के लिए स्थानीय निकायों में सीटें आरक्षित करने से पहले राज्य द्वारा अनुपालन की जाने वाली तीन परीक्षण शर्तों के अनुसार राज्य में स्थानीय निकायों के पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना; आयोग की सिफारिशों के दृष्टिगत, स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए अपेक्षित आरक्षण के अनुपात को विनिर्दिष्ट करना, ताकि अत्याधिकता न हो; और किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में 50 प्रतिशत ऊध्वार्धर आरक्षण की ऊपरी सीमा का उल्लंघन नहीं करेगा अपेक्षित है।

 

एक अन्य याचिका संख्या 278 का 2022 शीर्षक ‘‘सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य तथा अन्य’’, में उच्च न्यायालय के आदेश 10 मई,2022 में कहा गया है कि जब तक राज्य सरकारों द्वारा ‘सभी तरह से’ ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी नहीं की जाती है, तब तक राज्य सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जा सकता है और सभी राज्य सरकारों व सम्बन्धित राज्य चुनाव आयोगों को संवैधानिक जनादेश को बनाए रखने के लिए इसका पालन करने के निर्देश दिये गये हैं।

सरकार, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की अधिसूचना 12 जुलाई,2022 द्वारा अन्य कार्यों के साथ-साथ, राज्य में, पंचायती राज संस्थाओं और पालिकाओं में पिछड़े वर्गों के लिए किए जाने वाले प्रावधान में आरक्षण के अनुपात का अध्ययन और सिफारिश करने के लिए हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया था। इससे पहले हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग ने पालिकाओं के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की थी, जिसे मंत्रिपरिषद की बैठक 8 मई,2023 में स्वीकार कर लिया गया था। तदानुसार, हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 की धारा-10 के तहत 2023 के अधिनियम संख्या 24, 19 सितम्बर, 2023 के तहत प्रावधान किया गया था कि प्रत्येक पालिका में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी और इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस पालिका में कुल संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य, निकटतम होगी, जो उस पालिका की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़ा वर्ग क की जनसंख्या के अनुपात की आधी होंगी।

भारत में अंतिम जनगणना जिसमें जाति आधारित आंकड़ें शामिल किये गये थे, 1931 में की गई थी। 1951 के बाद से प्रत्येक जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या प्रकाशित की गई है। इस प्रकार जनगणना में पिछड़ा वर्ग ‘क’ की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सरकार ने हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत परिवार सूचना डाटा कोष (एफ.आई.डी.आर.) की स्थापना की है, जिसमें परिवारों में गठित हरियाणा के निवासियों के बारे में जानकारी उपलब्ध है जिसे गतिशील रूप से अद्यतन और समय-समय पर सत्यापित किया जाता है।

 

पालिकाओं के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आरक्षण के प्रयोजनार्थ एफ.आई.डी.आर. में उपलब्ध आंकड़ों पर विचार किया गया है। पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए सीटों का आरक्षण और प्रत्येक पालिका के लिए पिछड़े वर्ग ‘क’ सहित सीटों की कुल संख्या, ऐसी तिथि, जो सरकार द्वारा अधिसूचित की जाए, को हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत स्थापित परिवार सूचना डाटा कोष से प्राप्त की गई जनसंख्या के आधार पर नियत की जाएगी।

मतदाता-जनसंख्या अनुपात के अनुसार, राज्य में प्रत्येक 1000 व्यक्तियों पर योग्य मतदाताओं की संख्या लगभग 700 है। चूंकि, परिवार पहचान पत्र के लिए नामांकन एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है और इस बात की संभावना है कि कुछ क्षेत्रों में अधिकांश निवासियों ने एफ.आई.डी.आर. में पंजीकरण नहीं कराया हो, जहां परिवार सूचना डाटा कोष से ली गई जनसंख्या, अन्तिम प्रकाशित मतदाता सूची के अनुसार ऐसे क्षेत्रों में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या के 140 प्रतिशत से कम है, तो क्षेत्र की मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या के 140 प्रतिशत के बराबर जनसंख्या पर विचार किया जाएगा। राज्य निर्वाचन आयोग, हरियाणा के परामर्श से हरियाणा नगरपालिका वार्ड परिसीमन नियम, 1977 के नियम 7 में संशोधन करके पालिका के वार्डों में जनसंख्या भिन्नता की सीमा को प्रति वार्ड औसत जनसंख्या से ऊपर या नीचे 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया है।

 

हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुरूप नगर परिषदों एवं नगरपालिकाओं में अध्यक्ष के पदों में पिछड़े वर्गों ‘क’ के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए, राज्य निर्वाचन आयोग, हरियाणा के परामर्श से, हरियाणा नगरपालिका निर्वाचन नियम, 1978 के नियम 70 के तहत प्रावधान किया गया है।

अब, हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट 5 अगस्त,2024 के माध्यम से पालिकाओं के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए भी आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की है कि प्रत्येक पालिका में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी और इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस पालिका में कुल सीटों की संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य निकटतम होंगी, जो उस पालिका की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़ा वर्ग व की जनसंख्या के अनुपात की आधी होगी।

 

नगर परिषदों एवं नगर पालिकाओं में अध्यक्षों के कार्यालयों में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की गई है, जिसके लिए राज्य चुनाव आयोग, हरियाणा के परामर्श से, हरियाणा नगरपालिका निर्वाचन नियम, 1978 के नियम 70 के तहत प्रावधान किया जाना है। 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित ट्रिपल टैस्ट की तीसरी शर्त के अनुपालन में, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग ‘क’ तथा पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए आरक्षित कुल सीटों की संख्या, पालिका में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। यदि ऐसा होता है तो प्रथम पिछड़ा वर्ग ‘ख’ तथा तदोपरान्त पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, ऐसी अधिकतम संख्या तक अप्रतिबंधित की जाएगी, जो अनुसूचित जातियों, पिछड़ा वर्ग ‘क’ तथा पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, उस पालिका में कुल सीटों की कुल संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए प्रत्येक पालिका में सीटों का आरक्षण, ऐसी तिथि, जो सरकार द्वारा अधिसूचित की जाए को, हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत स्थापित परिवार सूचना डाटा कोष पर उपलब्ध है, की जनसंख्या के आधार पर नियत की जाएगी। 

 

इसलिए, प्रत्येक पालिका की सीटों में पिछड़े वर्गों ‘ख’ के लिए आरक्षण का प्रावधान करने के लिए, हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1973 की धारा 10 में संशोधन किया जाना आवश्यक है, जोकि 16 अगस्त,2024 से अधिसूचित करने की तारीख से प्रभावी होगा।

हरियाणा नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2024

 

हरियाणा नगर पालिका अधिनियम, 1994 को संशोधित करने के लिए हरियाणा नगर निगम (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया गया। 

 

संशोधन के अनुसार प्रत्येक निगम में पिछड़े वर्ग ‘ख’ के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी तथा इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस निगम में सीटों की कुल संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य, निकटतम होंगी, जो उस निगम की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़े वर्ग ‘ख’ की जनसंख्या के अनुपात की आधी होगी तथा यदि दशमलव 0.5 या उससे अधिक है तो आगामी उच्चतर पूर्णांक में पूर्णांकित की जाएगी, तथा अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्ग ‘क’ के लिए पहले से ही आरक्षित सीटों को निकालने के बाद, ऐसी सीटें, उन सीटों, जिनमें पिछड़े वर्ग ‘ख’ की जनसंख्या की अधिकतम प्रतिशतता है, से प्राप्त की गई पिछड़े वर्ग ‘ख’ के आरक्षण हेतु प्रस्तावित सीटों की संख्या की तीन गुणा में से ड्रा ऑफ लॉट्स द्वारा आबंटित की जाएंगी।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 में वर्णित आरक्षण नीति द्वारा पालिकाओं की संरचना निर्देशित होती है, इससे खंड (6) में प्रावधान है कि इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी पालिका में स्थानों के या पालिकाओं में अध्यक्षों के पद के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. के0 कृष्ण मूर्ति व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य (2010) 7 एस.सी.सी. 202 के मामले में 11 मई,2010 के अपने निर्णय में अनुच्छेद 243 (6) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए कहा कि यह प्रावधान राज्य विधानमंडलों को पिछड़े वर्गों के पक्ष में सीटें आरक्षित करने में सक्षम बनाता है।

 
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2019 की याचिका संख्या 980 शीर्षक विकास किशनराव गवाली बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य में 4 मार्च,2021 को पारित अपने फैसले से राज्य विधान, राज्य भर में, एक स्वतंत्र आयोग द्वारा पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की उचित जांच के बिना स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण की एक समान और कठोर मात्रा प्रदान नहीं कर सकता है। पिछड़े वर्गों के लिए स्थानीय निकायों में सीटें आरक्षित करने से पहले राज्य द्वारा अनुपालन की जाने वाली तीन परीक्षण शर्तों के अनुसार राज्य में स्थानीय निकायों के पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना; आयोग की सिफारिशों के दृष्टिगत, स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए अपेक्षित आरक्षण के अनुपात को विनिर्दिष्ट करना, ताकि अत्याधिकता न हो; और किसी भी मामले में ऐसा आरक्षण अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में 50 प्रतिशत ऊध्वार्धर आरक्षण की ऊपरी सीमा का उल्लंघन नहीं करेगा अपेक्षित है।

 

एक अन्य याचिका संख्या 278 का 2022 शीर्षक ‘‘सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य तथा अन्य’’, में उच्च न्यायालय के आदेश 10 मई,2022 में कहा गया है कि जब तक राज्य सरकारों द्वारा ‘सभी तरह से’ ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी नहीं की जाती है, तब तक राज्य सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जा सकता है और सभी राज्य सरकारों व सम्बन्धित राज्य चुनाव आयोगों को संवैधानिक जनादेश को बनाए रखने के लिए इसका पालन करने के निर्देश दिये गये हैं।

सरकार, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की अधिसूचना 12 जुलाई,2022 द्वारा, अन्य कार्यों के साथ-साथ, राज्य में, पंचायती राज संस्थाओं और पालिकाओं में पिछड़े वर्गों के लिए किए जाने वाले प्रावधान में आरक्षण के अनुपात का अध्ययन और सिफारिश करने के लिए हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया था। इससे पहले हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग ने पालिकाओं के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की थी, जिसे मंत्रिपरिषद की बैठक 8 मई,2023 में स्वीकार कर लिया गया था। तदानुसार, हरियाणा नगरपालिका अधिनियम, 1994 की धारा-6 तथा 11 के तहत 2023 के अधिनियम संख्या 25, 19 सितम्बर,2023 के तहत प्रावधान किया गया था कि प्रत्येक निगम में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी और इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस पालिका में कुल संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य, निकटतम होगी, जो उस पालिका की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़ा वर्ग ‘क ’ की जनसंख्या के अनुपात की आधी होंगी।

भारत में अंतिम जनगणना जिसमें जाति आधारित आंकड़े शामिल किये गये थे, 1931 में की गई थी। 1951 के बाद से प्रत्येक जनगणना में केवल अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या प्रकाशित की गई है। इस प्रकार जनगणना में पिछड़ा वर्ग ‘क’ की जनसंख्या के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सरकार ने हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत परिवार सूचना डाटा कोष (एफ.आई.डी.आर.) की स्थापना की है, जिसमें परिवारों में गठित हरियाणा के निवासियों के बारे में जानकारी उपलब्ध है जिसे गतिशील रूप से अद्यतन और समय-समय पर सत्यापित किया जाता है।

 

इसलिए, नगर निगमों के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आताण के प्रयोजनार्थ एफ.आई.डी.आर. में उपलब्ध आंकड़ों पर विचार किया गया है। पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए सीटों का आरक्षण और प्रत्येक पालिका के लिए पिछड़े वर्ग ‘क’ सहित सीटों की कुल संख्या, ऐसी तिथि, जो सरकार द्वारा अधिसूचित की जाए, को हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत स्थापित परिवार सूचना डाटा कोष से प्राप्त की गई जनसंख्या के आधार पर नियत की जाएगी।

मतदाता-जनसंख्या अनुपात के अनुसार, राज्य में प्रत्येक 1000 व्यक्तियों पर योग्य मतदाताओं की संख्या लगभग 700 है। चूंकि, परिवार पहचान पत्र के लिए नामांकन एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है और इस बात की संभावना है कि कुछ क्षेत्रों में अधिकांश निवासियों ने एफ. आई. डी. आर. में पंजीकरण नहीं कराया हो, इस प्रकार यह भी विचार किया गया है कि जहां परिवार सूचना डाटा कोष से ली गई जनसंख्या, अन्तिम प्रकाशित मतदाता सूची के अनुसार ऐसे क्षेत्रों में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या के 140 प्रतिशत से कम है, तो क्षेत्र की मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या के 140 प्रतिशत के बराबर जनसंख्या पर विचार किया जाएगा। राज्य निर्वाचन आयोग, हरियाणा के परामर्श से हरियाणा नगरपालिका वार्ड परिसीमन नियम, 1994 के नियम 7 में संशोधन करके निगम के वार्डों में जनसंख्या भिन्नता की सीमा को प्रति वार्ड औसत जनसंख्या से ऊपर या नीचे 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया है।

 

हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के अनुरूप नगर निगम में महापौर पदों में पिछड़े वर्गों ‘क’ के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए, राज्य निर्वाचन आयोग, हरियाणा के परामर्श से, हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियम, 1994 के नियम 71(7) के तहत प्रावधान किया गया है।

हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग की 5 अगस्त,2024 की रिपोर्ट के माध्यम से पालिकाओं के चुनावों में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए भी आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की है कि प्रत्येक पालिका में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी और इस प्रकार आरक्षित सीटों की संख्या, उस पालिका में कुल सीटों की संख्या के समरूप अनुपात में, यथाशक्य निकटतम होंगी, जो उस पालिका की कुल जनसंख्या के अनुसार पिछड़ा वर्ग व की जनसंख्या के अनुपात की आधी होगी।

 

नगर निगमों में महापौरों के कार्यालयों में पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए पांच प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की गई है, जिसके लिए राज्य चुनाव आयोग, हरियाणा के परामर्श से, हरियाणा नगर निगम निर्वाचन नियम, 1994 के नियम 71(7) के तहत प्रावधान किया जाना है। 

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित ट्रिपल टैस्ट की तीसरी शर्त के अनुपालन में, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग ‘क’ तथा पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए आरक्षित कुल सीटों की संख्या, निगम में कुल सीटों की संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। यदि ऐसा होता है तो प्रथम पिछड़ा वर्ग ‘ख’ तथा तदोपरान्त पिछड़ा वर्ग ‘क’ के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, ऐसी अधिकतम संख्या तक अप्रतिबंधित की जाएगी, जो अनुसूचित जातियों, पिछड़ा वर्ग ‘क’ तथा पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए आरक्षित सीटों की संख्या, उस निगम में कुल सीटों की कुल संख्या के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। पिछड़ा वर्ग ‘ख’ के लिए प्रत्येक निगम में सीटों का आरक्षण, ऐसी तिथि, जो सरकार द्वारा अधिसूचित की जाए को, हरियाणा परिवार पहचान अधिनियम, 2021 (2021 का 20) के तहत स्त्थापित परिवार सूचना डाटा कोष पर उपलब्ध है, की जनसंख्या के आधार पर नियत की जाएगी। 

 

इसलिए, प्रत्येक निगम में पिछड़े वर्ग ‘ख’ के लिए वार्डों का पता लगाने और प्रत्येक निगम की सीटों में पिछड़े वर्ग ‘ख’ के लिए आरक्षण का प्रावधान करने के लिए, हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 की धारा 11 में संशोधन किया जाना आवश्यक है, जोकि 16 अगस्त, 2024 से यानी अध्यादेश क्रमांक 2024 के 03 को अधिसूचित करने की तारीख से प्रभावी होगा।

हरियाणा नगरीय क्षेत्र विकास तथा (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024

 

हरियाणा नगरीय क्षेत्र विकास और विनियमन अधिनियम, 1975 को संशोधन करने के लिए हरियाणा नगरीय क्षेत्र विकास तथा (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2024 पारित किया गया।

 

तत्पश्चात, भू-संपदा (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 अधिनियमित किया गया और इस अधिनियम के नियम वर्ष 2017 में बनाए गए। इस अधिनियम की धारा 2 (थ) और 2 (यच) क्रमश: कम्पलीशन सर्टिफिकेट और ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट को परिभाषित करती है जोकि समानता के उद्देश्य के लिए एक पूर्ण परियोजना मानी जाती है। 

 

तदनुसार, यह उचित होगा कि सबसे पहले, कम्पलीशन सर्टिफिकेट और ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट के बीच समानता के निर्माण के लिए एक सक्षम प्रावधान बनाने के लिए ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट को परिभाषित किया जाए। इसके अतिरिक्त, कम्पलीशन सर्टिफिकेट और ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट को हरियाणा शहरी क्षेत्र विकास और विनियमन अधिनियम 1975 में परिभाषित नहीं किया गया है जो कि अब इस अधिनियम में समावेशित करना प्रस्तावित है।

दोनों अधिनियमों के बीच समानता लाने और उन कॉलोनियों के लिए कम्पलीशन सर्टिफिकेट प्रदान करने में तेजी लाने के लिए, पहले से बसी हुई परियोजनाओं को समापन प्रमाणपत्र प्रदान करने पर विचार करने की आवश्यकता महसूस की गई है जहां प्लाटिड कॉलोनियों के अलावा अन्य कॉलोनियों के मामले में सभी बिल्डिंग ब्लॉकों के लिए ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा चुका है और जहाँ प्लाटिड कॉलोनियों के मामले में पूरे क्षेत्र के लिए आंशिक कम्पलीशन सर्टिफिकेट जारी किया जा चुका है।

 

हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) संशोधन विधेयक, 2024

 

हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) संशोधन अधिनियम, 2014 को संशोधित कर हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) संशोधन विधेयक, 2024 पारित किया गया।

हरियाणा राज्य में सिख गुरुद्वारों और गुरुद्वारा संपत्ति के स्वायत्त प्रबंधन और प्रभावी पर्यवेक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) अधिनियम 2014 लागू किया गया था। उक्त अधिनियम की धारा 46 में हरियाणा सिख गुरुद्वारा न्यायिक आयोग के गठन का प्रावधान है जिसमें तीन सदस्य होंगे और अध्यक्ष, जिला न्यायाधीश होगा, यदि इस प्रकार नियुक्त किया जाता है और यदि जिला न्यायाधीश नियुक्त नहीं किया जाता है तो तीन सदस्यों में से एक उनकी वरिष्ठता के क्रम में अध्यक्ष होगा। अध्यक्ष या सदस्य का कार्यकाल पांच वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो, होगा। हरियाणा सिख गुरुद्वारा न्यायिक आयोग एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण है, जिसके निर्णय अंतिम होते हैं। गुरुद्वारा संपति, उसकी निधियों और गुरुद्वारा समिति, कार्यकारी बोर्ड या किसी अन्य संस्थानों के बीच किसी भी अन्य विवाद से संबंधित विवाद पर आयोग द्वारा निर्णय लिया जाना है। इसलिए, यह उचित समझा गया है कि उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश को भी आयोग के सदस्य और अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, आयोग के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए, धारा 46 की उप-धारा (1) के खंड (द्ब1) में प्रदान की गई 65 वर्ष की आयु की ऊपरी सीमा को हटा दिया जाना चाहिए।

आयोग के सदस्यों और अध्यक्ष के रूप में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति करने और 65 वर्ष की आयु की ऊपरी सीमा को हटाने और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक मामलों के लिए प्रावधान करने के लिए एक विधि अर्थात हरियाणा सिख गुरुद्वारा (प्रबंधक) संशोधन विधेयक, 2024 अपेक्षित है।

 

हरियाणा संविदात्मक कर्मचारी (सेवा की सुनिश्चितता), विधेयक, 2024

 

हरियाणा संविदात्मक कर्मचारी (सेवा की सुनिश्चितता), विधेयक, 2024 संविदात्मक कर्मचारियों की सेवा की सुनिश्चितता और उससे संबंधित या उसके अनुषंगिक मामलों के लिए उपबंध करने हेतु विधेयक पारित किया गया।

विभिन्न सरकारी संगठनों में जो कर्मचारी अनुबंध, तदर्थ और आउटसोर्स आधार पर कार्य कर रहे हैं उनकी संख्या अधिक है। इन कर्मचारियों ने अपने जीवन के अनेक वर्ष राज्य सरकार की सेवा में समर्पित किए हैं, लेकिन अब उन्हें भविष्य की अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। नियमित सरकारी रिक्तियों हेतु उनकी आयु अधिक होने से और भी जटिल स्थिति उत्पन्न हुई है। इस स्थिति के कारण प्रभावित व्यक्तियों की ओर से कई प्रतिवेदन आए हैं और न्यायालयों में कानूनी चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, जिसके कारण सरकार के लिए अत्यधिक प्रशासनिक और कानूनी अड़चनें उत्पन्न हो गई है।

इसके अतिरिक्त, इन कर्मचारियों द्वारा सरकार को प्रदान की गई अनेक वर्षों की समर्पित सेवा उपरांत कार्यमुक्त करने या उनकी जगह नए नियमित कर्मचारियों की नियुक्ति उपरांत उत्पन्न हुए अन्याय के संबंध में न्यायालयों ने निरंतर जोर दिया है। उच्च न्यायालय के समक्ष दायर एल0पी0ए0 576/2023 (दर्शना देवी बनाम हरियाणा राज्य) मामले में सरकार ने ऐसे कर्मचारियों के नियमितीकरण हेतु नीति बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिन्हें पूर्व में स्वीकृत पदों के अभाव के कारण नियमित नहीं किया जा सका था। इन कर्मचारियों के बीच व्याप्त तनाव और अनिश्चितता को दूर करने की आवश्यकता है, ताकि विभिन्न सरकारी कार्यों में अवरोध एवं न्यायालयों में कानूनी विवाद की कोई संभावना न हो। राज्य की प्रतिबद्धता के साथ-2 चल रहे कानूनी संघर्षों के मध्यनजर, राज्य की सुनिश्चितता को बनाए रखने और आगे की कानूनी जटिलताओं को रोकने के लिए तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है।

अनुबंधित कर्मचारियों के बीच व्याप्त तनाव व अनिश्चितता को दूर करने के लिए एवं न्यायालय के समकक्ष की गई प्रतिबद्धता को पूरा करने हेतु ऐसे कर्मचारी जिन्होंने लंबे समय तक सरकार को सेवा प्रदान की है, को सेवा सुरक्षा प्रदान करने हेतु अधिनियम का सृजन करना प्रस्तावित है। इस संबंध में 14 अगस्त, 2024 को हरियाणा संविदा कर्मचारी (सेवा की सुरक्षा), अध्यादेश, 2024 अधिसूचित किया गया था।

 

हरियाणा संविदा कर्मचारी (सेवा की सुरक्षा), प्रस्तावित अधिनियम, 2024 का उद्देश्य कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करने, अनुबंधित कर्मियों की सेवा शर्तों में सुधार करने और सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करना है, ताकि सरकारी विभागों के कामकाज में स्थिरता और निरंतरता सुनिश्चित हो और लंबे समय से सेवारत संविदा कर्मचारियों का भला हो। इसलिए यह विधेयक लाया गया है।