फेमस चित्रकार के नहीं दोनों हाथ और एक पैर, मौत को भी दे चुकी मात, फिर भी हासिल की बड़ी उपलब्धियां

 

Chopal Tv, Allahabad

इन दिनों पैरालंपिक में दिव्यांग खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे है। ऐसा पहली बार हुआ है कि देश ने पैरालंपिक में 19 खिताब जीते है। लेकिन कुछ खिलाड़ी ऐसे है जो मैदान में ना सही बल्कि अपने हुनर के दम पर अपनी पहचान बनाते है।

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज की दिव्यांग सरिता ने अपने हौसलों के दम पर अपनी पहचान बनाई। दरअसल सरिता ने ये साबित कर दिया कि पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है क्योंकि 4 साल की वर्ष में सरिता ने अपने दोनों हाथ और एक पैर खो दिया था।

सरिता हाईटेंशन तार की चपेट में आ गई थी जिसकी वजह से उसका आधा शरीर बुरी तरह झुलस गया था। कई सर्जरी होने के बाद उनकी जान तो बच गई लेकिन दो हाथ और एक पैर गवां दिया। सरिता कहती हैं, ‘मेरे माता-पिता ने उम्मीद व हौसलों के रंग मेरी जिंदगी में भरे।

सरिता मुंह में ब्रश को दबाकर दाहिने पैर की अंगुलियों के सहारे कैनवास पर रंग भरती है। सरिता फतेहपुर की रहने वाली है। उनके पिता विजयकांत द्विवेदी भूतपूर्व सैनिक और मां विमला द्विवेदी ने सरिता के हौसलों को हमेशा उड़ान दी।

सरिता ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएफए की डिग्री हासिल की। आजतक सरिता पढ़ाई से लेकर  कला क्षेत्र में कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुकी है। फिलहाल सरिता भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम में काम करते हुए दिव्यांगों की सेवा कर रही है।

सरिता बहुत खुबसुरत पेटिंग करती है। वह अपनी विरासत, संस्कृति एवं परंपरा से रूबरू होने के साथ ही पेंटिंग, फोटोग्राफी, हस्त एवं शिल्प कला में रुचि रखने वाली सरित अब तक देश के अधिकतर धार्मिक स्थलों पर भी जा चुकी हैं।

सरिता 16 साल की उम्र में 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय पुरस्कार बालश्रीसे नवाजा था। साल 2008 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इंपावरमेंट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज अवार्ड से नवाजा।

इसके बाद साल 2009 में मिनिस्ट्री आफ इजिप्ट ने इंटरनेशनल अवॉर्ड तथा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला तथा देश की पहली महिला जस्टिस लीला सेठ ने सरिता को गॉडफे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया है।